वैसे तो अनको पिता-पुत्र की कहानियाँ हैं चाहे वह 'श्रवण कुमार' हों या राजा दशरथ और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की गाथा हो। महाभारत से लेकर रामायण तक हजारों ऐसी कहानियां हैं जो पिता पुत्र के सम्बन्ध को आदर्श बनाते हैं उदाहरण के तौर पर राजा दशरथ और मर्यादा पुरषोत्तम राम , राजा राम और लव कुश, महाभारत में धृतराष्ट्र और दुर्योधन, गुरु द्रोण और अश्वत्थामा , अर्जुन और अभिमन्यु।
आज पितृ दिवस(Fathers Day) है इस मौके पर हम लेकर आए हैं संसार के सर्वश्रेष्ठ पिता-पुत्र की कहानी जिससे आप प्रेरणा के साथ साथ जीवनरूपी मार्ग में अनुकरण कर सकते हैं।
भगवान भोलेनाथ और गणेश
वैसे तो भगवान शिव और उनके पुत्र गणेश की अनेकों कहानियाँ नारद पुराण, स्कन्द पुराण, शिव पुराण में पढ़ सकते हैं हम बात करते हैं उस कहानी की जिसे कई अलग - अलग जगहों पर भिन्न-भिन्न तरीके से पेश किया गया है भगवान शिव के पुत्र गणेश के श्री गणेश बनने का वृतांत, इसे पढ़कर यकीन मानिए आपको श्री गणेश जी की बौद्धिकता और मातृ-पितृ भक्ति का अप्रतिम उदाहरण मिलेगा।
देवताओं में प्रथम पूज्य
एक बार देवताओं की सभा मे एक मुद्दा उठा कि 'प्रथम पूज्य' का दर्जा आखिर किस देवता को मिलना चाहिए, देवराज इन्द्र ने प्रथम मत रखा कि मैं सारे देवताओं का शाशक हूँ इसीलिए प्रथम पूज्यनीय मुझे होना चाहिए। इतने में अग्निदेव ने अपनी उपयोगिता बताते हुए कहा कि अगर मैं न रहूँ तो भोजन पक नही पाएगा,हवन यज्ञ नही होगा और यदि मैं चाहूँ तो समस्त संसार को जला सकता हूँ। वरुण(जल)देव खड़े हो उठे उन्होंने कहा कि प्रथम पूज्यनीय मुझे होना चाहिए क्योंकि अगर मैं न रहूँगा तो लोग प्यासे मर जाएंगे,अन्न उत्पन्न नही होगा,हवन नही होगा इत्यादि और अपनी शक्ति की क्षमता का बखान करते हुए कहा कि मैं चाहूं तो समस्त संसार को जलमग्न कर दूं।
वायु देव ने कहा कि मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ क्योंकि अगर मैं बिगड़ जाऊं तो लोगों का जीवन ही संकट में पड़ जाएगा,संसार सांस नही ले पाएगा,मैं चाहूँ तो संसार को तहस नहस कर सकता हूँ। इस तरह सारे देवताओं चाहे सूर्य हों या चंद्र सबने अपना अपना मत रखा किन्तु हल कुछ नही निकला, समस्या जस का तस वैसे ही विद्यमान थी। तब सारे देवताओं ने निर्णय लिया कि इस सवाल के हल के लिए देवाधिदेव महादेव की शरण पर चलते हैं।
"अब यहाँ पर एक प्रश्न यह उठता है कि देवतागण त्रिदेवों (ब्रम्हा, विष्णु,महेश) में से सिर्फ महादेव के पास ही क्यों गयें। इसका उत्तर इस बात पर निहित है कि न्याय कौन कर सकता है? न्याय वही कर सकता है जो धर्म पर विराजमान हो और संसार मे यह बात सर्व विदित है कि भगवान शिव के वाहन 'नंदी' धर्म का साक्षात रूप हैं इसलिए देवता भोलेनाथ की शरण मे गए"
देवताओं ने महादेव से पूछा कि पहला पूज्यनीय भगवन कौन होगा आप ही न्याय करें,भगवान शंकर ने सोचा कि एक का नाम लेना तो उचित नही रहेगा,सर्वश्रेष्ठ कौन है इसके लिए उचित माप दण्ड तय करना होगा,भगवान भोलेनाथ इतने दयालु हैं कि वह कभी भी भेदभाव नही करते,क्या देव क्या दानव वह सबको समभाव दृष्टि से देखते हैं उनकी अनेक कहानियों में यह पढ़ने को मिलेगा।
काफी विचारने के बाद महादेव ने निर्णय लिया एक प्रतियोगिता का, प्रतियोगिता में उन्होंने सारे देवताओं को आदेशित किया कि सारे देवता गण जाकर अपना वाहन उठाओ और सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड के '68 करोड़ तीर्थ' की परिक्रमा करके आओ जो पहले परिक्रमा पूर्ण कर लेगा वही प्रथम पूज्य का भागीदार होगा। सारे देवता अपना वाहन किसी के पास उच्चश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी तो किसी के पास शेर,चीता,मोर लेकर प्रतियोगिता को पूरा करने निकल पड़ते हैं।
आखिर क्यों प्रथम पूज्य गणेशजी को माना जाता है
सबके जाने के बाद अकेले गणाधिनायक भगवान गणपति अर्थात गणेश जी वहीं पर खड़े रहे,उन्होंने विचार किया कि मेरा हाँथी जैसा गजबदन शरीर और मेरी सवारी यह छोटा सा मूसक,क्या यह मुझे परिक्रमा पूर्ण कराकर समय पर वापस ला पाएगा,और फिर जिस पुरुषार्थ का परिणाम प्रथम दृष्टया गोचर हो रहा हो अर्थात जिस मेहनत का परिणाम पहले से ही ज्ञात हो वहाँ मेहनत को क्यों जाया करना,
गणेश जी आगे विचार करते हैं कि भगवान शिव अर्थात पिताजी इस प्रतियोगिता में तो केवल भागदौड़ की बात तो नही कर रहें होंगे जरूर कुछ न कुछ गूढ़(गहरा) रहस्य है भगवान गणेश ने कई शास्त्रों का मंथन किया अनेकों श्लोकों को बारम्बार एक एक करके ध्यान किया और अंत मे बहुत सुन्दर श्लोक गणेशजी की स्मृति में आया वह श्लोक था
"सर्वे देवाय गवामंगे तीर्थानि गौ पदेश च"
इस श्लोक का अर्थ यह हुआ कि 'सभी तीर्थ गौ माता के चरणों मे निवास करते हैं' गणेश जी प्रसन्न हो गए और मूसक पर सवार होकर माता पार्वती के बगल में भगवती 'गौमाता' विराजमान थीं और भगवान शिव के समीप 'नंदीश्वर' अर्थात नंदीबाबा विराजमान थे। भगवान गणेश जी ने गौमाता,नंदीबाबा और साथ मे माता-पिता की 7 परिक्रमा करके दीपक जलाया और भगवान भोलेनाथ के समक्ष हाँथ जोड़कर खड़े हो गए।
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भगवान शिव और गणेश सम्वाद
भोलेनाथ ने कहा कि अरे बालक तुझे नही जाना है परिक्रमा करने?
गणेश- मुझे तो पूरी परिक्रमा का लाभ मिल गया है मैने तो पूर्ण भी कर ली अब तो फैसला सुनाने की बारी है।भगवान शिव कहते हैं कि अभी तो तुम गणेश यहीं विचरण कर रहे हो तब कैसे पूर्ण हुई तुम्हारी प्रतियोगिता?गणेश-प्रभु आप अन्तर्यामी है आप तो परीक्षा ले रहें हैं, आप ही ने तो बुद्धिजनों को बुद्धि देकर शास्त्रों में अंकित करवाया है और गणेश श्लोक पढ़ते हैं-
"तीर्थानि गौ पदेश च"
अर्थात सभी तीर्थ गौ माता के पैरों में हैं तो मैंने तो गाय,नंदी,माता-पिता सबकी परिक्रमा पूर्ण कर ली और सारी पृथ्वी में जब अंधकार छा गया(सूर्य भगवान भी अपना दायित्व छोड़कर प्रतियोगिता में भाग ले रहे थे)तब आपके समक्ष दीपक जलाकर प्रकाशमय किया,भगवान गणेश कहते हैं कि इस तरह सारे तीर्थो का फल अर्थात पृथ्वी की परिक्रमा का फल तो मुझे वैसे ही मिल गया।
भगवान शंकर गणेशजी की यह बात सुनकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं और मुस्कुराते हुए,गणेशजी की बात को सत्य मानते हुए,शास्त्रात्त्व जानते हुए गौ माता के चरणों मे 68 करोड़ के तीर्थों को पूर्णतया सत्य मानते हुए गौ परिक्रमा के फल को सकल ब्रम्हाण्ड के सकल तीर्थों को परिक्रमा के फल को समतुल्य जानते हुए भगवान गणेश जी की बुद्धि की सराहना तथा उनकी कर्तव्यनिष्ठा(संसार को प्रकाशमय किया ,प्रतियोगिता से ज्यादा कर्म) की सराहना करते हुए गणाधिनायक भगवान गणेश को संसार मे सबसे 'प्रथम पूज्यनीय' घोषित कर दिया।
समापन
इसी कारण से भगवान गणेश आज भी संसार मे सर्व प्रथम पूजे जाते हैं वह शुभता का प्रतीक हैं। कलयुग में जहां रिश्ते बिखर रहें हैं ऐसे में हमें अपने अतीत में जाना चाहिए कि हमारे बड़े बुजुर्ग कैसे रहे हैं। पिता जितने महान उतने ही महान पुत्र तो बोलो 'श्री गणेशाय नमः'।