आज महान क्रांतिकारी Bhagat Singh का Birthday है, महज 23 साल 5 महीने 26 दिन की उम्र में फाँसी के फंदे को चूमने वाले भगत सिंह को पढिये और मनन करिये की आज के परिदृश्य में अगर वो होते तो उनकी राजनीतिक समझ और सामाजिक सोच कहाँ तक विस्तृत होती
महज 23 साल की उम्र में उनकी लेखनी कितना प्रभावशाली थी इसी से उनके व्यक्तित्व का अंदाजा लगाया जा सकता है चाहे लाहौर में दिया गया भाषण हो या मित्र सुखदेव को लिखा गया सम्वाद हो जीवन की हर परिस्थिति में भगत सिंह खरे उतरते हैं।
दीजिए भगत सिंह को जन्मदिन का उपहार - Happy Birthday to Shaheed Bhagat Singh
देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते अपने पुरखों के बारे में जानकारी होना नैतिक कर्तव्य भी है और दायित्व भी है आप लोगों को अवश्य ही उनसे सीखने की जरूरत है अगर आप उनको पढ़ते हैं तो निश्चित ही राजनीतिक और सामाजिक सोच का दायरा बढ़ेगा।
वैसे तो महान क्रांतिकारियों को कुछ दिया नही जा सकता है। भगत सिंह महज एक जोशीले भाषण या श्रद्धांजलि तक सीमित नही है टी शर्ट में पोस्टर बॉय की इमेज से इतर उनके विचार क्या कहते हैं इसके लिए उनके लिखे पत्र किताबें और लेख जरूर पढ़िए।
आज भगत सिंह किस राजनीतिक पार्टी में होते
आज के राजनीतिक परिवेश में हर राजनीतिक संगठन भगत सिंह को अपने दल के महानायक के रूप में दिखाना चाहता है, पंजाब के चुनाव के दौरान "आम आदमी पार्टी" ने उनको पोस्टर बॉय बनाया था। देश की सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता कई बार मंचो और चुनावी रैलियों में उनका जिक्र करते हैं कुल मिलाकर हर राजनीतिक दल वोट बैंक और अपने फायदे को लेकर उनका नाम मौकापरस्त के रूप में इस्तेमाल कर लेते हैं।
भगत सिंह के राजनीतिक विचार समझने के लिए सबसे अच्छा माध्यम उनकी किताबें और लिखे हुए लेख हैं फिर भी थोड़ा प्रकाश डालने की कोशिश करते हैं।
- भगत सिंह बचपन में गांधी जी के आंदोलनों से प्रभावित थे लेकिन "जलियांवाला बाग हत्याकांड" के बाद असहयोग आन्दोलन के रद्द होने से काफी विचलित हुए।
- वह हिंसा के समर्थक नही थे उदाहरण के तौर पर ब्रिटिश असेंबली में बम ऐसी जगह फेंका जहां कोई मौजूद नहीं था।
- हिंसा के समर्थक नही थे लेकिन लाला लाजपतराय जी की मौत का बदला अंग्रेजी ऑफिसर सांडर्स की हत्या करके ली।
- वह गांधी जी का सम्मान करते थे किंतु वैचारिक मतभेद था लेकिन उन्होंने कभी भी किसी के रास्ते को गलत नही ठहराया।
- वह नास्तिकता पर विश्वास करते थे किंतु मानवता और हक की लड़ाई सर्वोपरि थी उनके लिए।
- जब वह मार्क्स या लेनिन को पढ़ते थे तब कम्युनिस्ट विचारधारा की छवि उन पर दिखती थी,लेकिन जब चंद्रशेखर आजाद की पार्टी "हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी(HRA)" का नाम बदलकर सोशलिस्ट मतलब समाजवादी जोड़ा तब उनकी विचारधारा समाजवादी विचारधारा लगती है।
- भगत सिंह पूंजीवाद के खिलाफ थे वह मजदूरों और वंचितों के हक की बात पुरजोर तरीके से उठाते थे।
इन फैक्ट्स के आधार पर आप खुद तय कीजिए की भगत सिंह आज किस राजनीतिक दल में सम्मिलित होते या आज होते तो किसी में शामिल न होकर खुद का दल बनाते। ऐसा कौन सा आज राजनीतिक दल है जिसमे एक साथ कम्युनिस्ट,समाजवादी या मार्क्सवादी एक साथ काम कर रहे हैं शायद ही कोई हो,भगत सिंह की "हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन" में सारे विचारधारा वाले लोग थे।
इतिहासकारों के अलग अलग मत है कुछ उन्हे कम्युनिस्ट समर्थक बताते हैं तो कुछ पहले कम्युनिस्ट और बाद में सोशलिस्ट बताते हैं कुछ इतिहासकार उन्हें मार्क्सवादी इसलिए बताते हैं क्योंकि वह वंचितों और महदूरों के हक की बात करते थे और पूंजीवाद के धुर विरोधी थे।
Note: इस लेख में लेखक के स्वयं के विचार हैं लेख में तथ्यों को आधार बनाकर कही गई बाते हैं इसमें किसी दल या व्यक्ति विशेष की अवहेलना करना उद्देश नही है।
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निष्कर्ष
ऊपर दिए गए तथ्यों और इतिहास कार की मान्यताओं से आप ही फैसला कीजिए कि आज के समय में वह किस राजनीतिक दल को चुनते?? उनको पढ़कर ही यह फैसला लिया जा सकता है क्योंकि भगत सिंह का व्यक्तित्व और कृतित्व सागर के समान है।