आधुनिक भारत कहें या आधुनिक विश्व में अनेकों आंदोलन और क्रांतियां हुई हैं 16वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक लगभग आधी दुनिया अंग्रेज क्राउन का गुलाम था, कहते हैं कि इन शताब्दियों में 'ब्रिटिश साम्राज्य' का सूरज नही डूबता था अर्थात आधी दुनिया ब्रिटिश उपनिवेश थी।
सारी दुनिया में क्रांतियां चल थी 1910 के दौर में यूरोप में लगभग हर देश अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने को प्रथम विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहा था.उसी दौर में अफ्रीका से महात्मा गांधी का आगमन होता है वैसे तो गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व को कुछ शब्दों में समेटना बेईमानी होगी।
महात्मा गांधी के मुख्य आन्दोलन (Mahatma Gandhi Ke Andolan) जिन्होंने बदल दी देश की तस्वीर
भारत 19वीं शताब्दी में प्रवेश कर चुका था और गुलामी से स्वतंत्रता की ओर अनेकों क्रांतिकारी अपने अपने रास्ते और ढंग से बढ़ रहे थे,भारत की आजादी में गांधी के आंदोलनों का अहम योगदान था,गांधी के आंदोलनों में अहिंसा और सत्याग्रह ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। आइए जानते हैं भारत की आजादी में गांधी के आंदोलनों की भूमिका कितनी प्रभावशाली रही। वैसे तो गांधी के आंदोलनो की शुरुवात "चंपारण सत्याग्रह" (1917) से हो चुकी थी लेकिन संपूर्ण भारत में वह ‘असहयोग आंदोलन’ के साथ गांधी युग की शुरुवात 1920 में हुई।
Champaran Satyagrah - चंपारण सत्याग्रह 1917
सन 1917 में गांधी बिहार के चंपारण जिला गए. चंपारण में ब्रिटिश जमीदारों ने किसानों को नील का अलावा और कोई खेती नही करने देते थे वह किसानों को "नील की खेती" के लिए बाध्य करते थे और नील बहुत ही सस्ते दामों में खरीदते थे जिससे वहां के किसानों की आर्थिक स्थिति बहुत ही ज्यादा दयनीय हो गई थी.
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महात्मा गांधी ने ब्रिटिश जमीदारों और हुकूमत का विरोध करने के लिए किसानों के आंदोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेजी सरकार को अपनी मांग मानने के लिए मजबूर किया.महात्मा गांधी की चमापरन सत्याग्रह के दौरान ही डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से मुलाकात हुई थी।
Kheda Satyagraha - खेड़ा सत्याग्रह 1918
गांधी चंपारण की यात्रा के बाद अपने ग्रह स्टेट के जिला खेड़ा पहुंचते हैं खेड़ा उन दिनों पहले बाढ़ और उसके बाद भयंकर सूखे की स्थिति से गुजर रहा था इस बाढ़ और सूखे का असर सीधे-सीधे वहां के किसानों की कमर तोड दी.ऐसे समय में ब्रिटिश हुकूमत ने किसानों को 'कर का भुगतान' न कर पाने पर जेल में डालना शुरू दिया था,अंग्रेजों द्वारा किसानों का उत्पीड़न किया जाता था इसके परिणाम स्वरूप गांधीजी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने आंदोलन के नेतृत्व की बागडोर अपने हाथों में सम्हाली और न सिर्फ किसानों को आजाद कराया बल्कि कर भी माफ करवाया।
अहमदाबाद का मिल मजदूर आंदोलन (1918)
महात्मा गांधी ने मिल मजदूरों के समर्थन में और मिल मालिकों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया यह आंदोलन मिल द्वारा मजदूरों का बोनस बंद कर देने के खिलाफ था.हालांकि जब आंदोलन बढ़ा तब मिल मालिकों ने 20 प्रतिशत बोनस देने की सहमति दी लेकिन गांधी ने उस समय महंगाई का मुद्दा उठाकर 35 प्रतिशत बोनस की अर्जी उस समय की ट्रिब्यूनल कोर्ट द्वारा स्वीकार करवाई जिससे गांधी और प्रचलित हुए।
Khilafat Movement - खिलाफत आंदोलन (1919)
खिलाफत आंदोलन वैश्विक आंदोलन था यह आंदोलन तुर्की में मुसलमानो पर अंग्रेजों द्वारा अत्याचार था जिसका विरोध एक कमेटी बनाकर भारत से मोहम्मद अली और शौकत अली भाइयों ने किया.महात्मा गांधी इस कमेटी की तरफ से प्रवक्ता थे और कलकत्ता में भाषण के दौरान उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिए गए सम्मान को वापस कर दिया,यह गांधीजी के विरोध करने का तरीका था इसको देखते हुए गांधी की छवि केवल मजदूरों और किसानों के नेता से इतर छवि बनी और इसका असर यह हुआ कि वह समस्त जातियों और धर्म के नेता मान लिए गए।
Non-Cooperation Movement असहयोग आंदोलन (1920)
असहयोग आंदोलन की शुरुवात का कारण यह था कि प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय लोगों से सहयोग बनाए रखने के लिए कहा था और बदले में बुनियादी व्यवस्था देने का वादा किया था और भारतीयों को वह सारे हक बिना भेदभाव देने की बात की थी जो एक आदर्श सरकार अपने नागरिकों को देती थी लेकिन विश्व युद्ध समाप्ति के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने अपना वादा पूरा नही किया जिसका नतीजा यह था कि गांधी ने 1920 में ‘असहयोग आंदोलन’ की नीव डाली.
गांधी का मानना था कि अंग्रेज भारत में सत्ता इसलिए चला पा रहे क्योंकि भारतीयों का समर्थन प्राप्त है अगर अंग्रेजों का सहयोग भारतीय नहीं करेंगे तो अंग्रेज एक दिन भारत छोड़कर चले जाएंगे.इस आंदोलन के बाद गांधी की आंधी संपूर्ण भारत में फैल गई।
Civil Disobedience Movement-सविनय अवज्ञा आंदोलन या नमक सत्याग्रह (1930)
महात्मा गांधी के मत्त्वपूर्ण में भी जो महत्त्वपूर्ण आंदोलन है वह नमक सत्याग्रह है इसे 'दांडी यात्रा' के नाम से भी जाना जाता हैं यह एक अहिंसक आंदोलन था।
12 March 1930 से 6 April 1930 तक महात्मा गांधी ने 24 दिन की यात्रा 78 लोगों के साथ शुरुवात की.इस 24 दिवसीय यात्रा में लगभग 390किलोमीटर की दूरी पैदल तय की और जगह जगह लोग उनके कारवां में जुड़ते रहे,यह यात्रा अप्रत्यक्ष रुप से अंग्रेजों के उपनिवेश के 'नमक' पर एकाधिकार के खिलाफ थी यह यात्रा साबरमती आश्रम से शुरू होकर दांडी(वर्तमान गुजरात में नवसारी) नामक स्थान पर पहुंच कर 6 April 1930 को सुबह 8:30 बजे "नमक का कानून" तोड़ा.
यह आंदोलन 1934 तक जारी रहा और लार्ड इरविन के साथ समझौते के साथ समाप्त हुआ.इस आंदोलन के का नतीजा यह हुआ कि लगभग 60000 लोगों को जेल में डाल दिया गया और तत्काल कोई रियायत भी नही दी गई।
दलित आंदोलन 1933
महात्मा गांधी ने छुआ छूत को खत्म करने के लिए 8 May 1933 को छुआछूत विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया. हालांकि 1932 में महात्मा गांधी ने 'छुआछूत' विरोधी लीग की स्थापन कर दी थी। गांधीजी दलितों को 'हरिजन' शब्द से संबोधित करते थे। इस शब्द का मतलब होता है कि 'हरि के सिवा दूजा कोई नही' यह नाम महात्मा गांधी के किसी करीबी ने भजन गाते वक्त उन्हें Suggest किया था।
Quit India Movement - भारत छोड़ो आंदोलन(1942)
द्वितीय विश्व युद्ध की कड़ी चुनौती में ब्रिटेन को उलझते हुए देख सुभाषचंद्र बोस ने नारा दिया 'दिल्ली चलो' यही मौका था जब गांधी को लगा कि ब्रिटेन कमजोर पड़ रहा और एक जुट होकर इन्हे भारत से खदेड़ा जा सकता है महात्मा गांधी ने मौके की नजाकत को भांपते हुए 8 अगस्त 1942 को रात में ही घोषणा कर दी कि "अंग्रेजों भारत छोड़ो" और "करो या मरो" का नारा दिया इस आंदोलन में जान झोंकने का काम लाल बहादुर शास्त्री ने की.
9 August 1942 को शास्त्री अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और 9 अगस्त को "काकोरी काण्ड स्मृति दिवस" मनाने की प्रथा भगत सिंह पहले ही कर के जा चुके थे इस दिन बहुत ज्यादा युवा एक साथ इकट्ठा होते थे परिणाम यह हुआ कि अंग्रेज सरकार की हालत पास्ता हो गए, गांधी,सरोजिनी नायडू, राजेंद्र प्रसाद समेत अन्य दिग्गज कांग्रेसी नेताओं को अंग्रेजी सरकार द्वारा नजरबंद कर दिया गया।
उस समय के सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 140 भारतीय शहीद और लगभग 2000 लोग घायल हुए इसके साथ ही लगभग 60000 भारतीय जेलों में बंद थे। विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद 1944 में गांधी को रिहा किया गया.इस आंदोलन से लाखों युवा प्रभावित हुए और कालेज की पढ़ाई छोड़कर क्रांति में कूद पड़े,इस आंदोलन को अब तक होने वाले सारे आंदोलनों से ज्यादा जनाधार मिला।
1945 में ब्रिटेन की सत्ता में लेबर पार्टी आई और उसने कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों पक्षों के बीच बैठकों का आयोजन किया। इस आंदोलन के दौरान मुस्लिम लीग जिन्ना समेत अपना व्यापक स्वरूप बढ़ा रहे थे इसी आंदोलन से विभाजन की नीव पड़ी।
- जानिए क्या कहते हैं विश्व के दिग्गज लोग Mahatma Gandhi के बारे में - Thoughts of World Famous People About Mahatma Gandhi
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निष्कर्ष
महात्मा गांधी भारत की स्वतंत्रता की धुरी थे या यूं कहें कि वह आंदोलनों के रीढ़ थे, गांधी के आंदोलनों से पता चलता है कि वह वैश्विक नेता थे यही कारण था कि उनके आंदोलनों की छाप विश्व के अन्य नेताओं के नेतृत्व वाले आंदोलनों में भी देखने को मिल जाती है।