हम सबको पता है कि हमारा देश भारत 15 August 1947 को अंग्रेजो से आजाद हुआ था आज अगर हम प्रगतिशील और स्वतंत्र जीवन यापन कर रहे हैं तो वह हमारे वीर सपूत क्रांतिकारियों की देन है. भारत की आजादी के इतिहास में वैसे तो बहुत सारे क्रांतिकारी और बहुत सारी मुख्य घटनाएं हैं उन्हीं घटनाओं में से एक घटना मुख्य तौर पर याद की जाती है वह है शहीद दिवस।
आइए जानते हैं क्यों है 23 March 1931 की तारीख खास और क्या हुआ था इस दिन।
23 मार्च 1931 का दिन
इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाते है इसके पीछे का इतिहास यह है कि इस दिन भारत के तीन महान सपूतों Bhagat Singh, Rajguru और Sukhdev Thapar को क्रूर अंग्रेजी गवर्नमेंट द्वारा फांसी पर लटका दिया गया था.इस फांसी के बाद पूरे देश में क्रांति की लहर जाग उठी थी पूरे देश के युवाओं में एक नए जोश का प्रसार हुआ और इसके बाद अंग्रेजों के दांतों तले पसीना आ गया था।
Bhagat Singh, Rajguru और Sukhdev को क्यों हुई थी फांसी
भगत सिंह की कहानी की शुरुवात करते हैं तो बात 1928 की है जब भारत में साइमन कमीशन आना था चूंकि भारतीय लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन का विरोध कर रहे थे इसके पीछे का कारण यह था कि साइमन कमीशन की टीम में एक भी मेंबर भारतीय नही था, लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध पुरजोर तरीके से किया गया जिससे अंग्रेजों में भय व्याप्त हुआ इस बात से अंग्रेजों ने आंदोलन कर्ताओं पर लाठी चार्ज करवा दिया जिससे मौके पर ही 27 November 1928 को ही लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई इस बात से चंद्रशेखर आजाद,भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु ने मिलकर इस लाठी चार्ज के आदेश देने वाले अधिकारी की हत्या करने की योजना बनाई.
17 December 1928 को जेम्स स्कॉट को मारने के लिए गए लेकिन उस समय स्कॉट की जगह जे सांडर्स आ गया और क्रांतिकारियों ने स्काट की जगह सांडर्स की हत्या कर दी और मौके से फरार हो गए.
Central Assembly में बम कांड
8 April 1929 का दिन था इस दिन अंग्रेजी असेंबली में Public Safety Bill और Trade Dispute Bill पारित होना था.भारतीय इन बिल्स का विरोध कर रहे थे लेकिन वायसराय अपनी विटो शक्ति का इस्तेमाल कर इस बिल को पारित करने की मंशा बना चुका था और दूसरी तरफ भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई लेकिन इस बार उनका इरादा किसी की हत्या करना नही बल्कि अंग्रेजों को आगाह करना था भगत सिंह ने उसी समय कहा था कि
"बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत पड़ती है"
बम ऐसी जगह फेंका गया जहां पर खाली जगह थी और बम फेंकने के बाद इंकलाब जिंदाबाद के नारे के साथ अपनी गिरफ्तारी दे दी इस मामले में बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को उम्र कैद की सजा सुनाई गई।
लाहौर षड्यंत्र केस
सांडर्स की हत्या के मामले में सुखदेव और राजगुरु को भी अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है चूंकि भगत सिंह पहले से ही जेल में थे और इन तीनों पर लाहौर षड्यंत्र केस चलाया जाता है जिसमे बाद में आरोपों की पुष्टि कर 7 October 1930 को तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई जाती है। इन सबके बीच जो एक नाम था चंद्रशेखर आजाद का उनको अंग्रेजी सरकार पकड़ ही नहीं पाई।
24 मार्च 1931 की जगह 23 March को फांसी क्यों दे दी गई
7 October 1930 को फांसी की सजा मुकर्रर होने के बाद सम्पूर्ण भारत में अंग्रेजी सल्तनत के खिलाफ क्रांति का बिगुल तेज हो गया सड़कों पर आम जनमानस ने देश के कोने कोने से विरोध करना शुरू कर दिया तत्कालीन अंग्रेजी सरकार डर के मारे होश खफ्ता हो गए लोग लाहौर जेल के सामने इकट्ठा होने का प्लान बना रहे थे नतीजा यह हुआ कि 24 मार्च सुबह की जगह 23 मार्च 1931 को भारत के तीन महान क्रांतिकारियों को शाम को 7:30 बजे सूर्यास्त के बाद फांसी पर लटका दिया गया।
कैसा था भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव के फांसी का आखिरी दिन?
भगत सिंह नास्तिक थे लेकिन वह गीता भी पढ़ते थे दर्शन का खासा ज्ञान था उन्हें, फांसी के दिन तक उनका पहले की तुलना में 4 किलो वजन बढ़ चुका था.जब जेलर उन्हें लेने पहुंचा था वह लेनिन की किताब पढ़ रहे थे,जेलर से कुछ समय लेने के बाद किताब खत्म की और जेलर के अंतिम इच्छा पूछने पर उन्होंने अपने दोनो मित्रों से गले मिलने की बात कही और जब फांसी के लिए जा रहे थे तो तीनों क्रांतिकारी एक गीत गुनगुना रहे थे वह गीत था
"मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग से बसंती चोला"
तीनों महान क्रांतिकारियों को फांसी देने के बाद पूरा देश शोक मग्न हो गया था हालांकि उनकी अंतिम इच्छा घर के बने खाने की थी जो कि पूरी नहीं हो पाई।
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निष्कर्ष
भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु आज के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं.भगत और सुखदेव की उम्र 23 साल के लगभग और राजगुरु की उम्र 22 वर्ष के लगभग थी। आज 23 मार्च1931 है जिसे हम शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं।