संविधान सभा के गठन के बाद December 13, 1946 को पण्डित जवाहर लाल नेहरू द्वारा एक "उद्देश प्रस्ताव" पेश किया गया,सभा द्वारा इसे परखने या मंजूरी देने में पूरे एक माह 9 दिन का समय लगा अर्थात 22 जनवरी 1947 को Constitution Assembly द्वारा इसे स्वीकृति दे दी गई।
26 November 1949 को जब संविधान सभा द्वारा संविधान को अंगीकृत किया गया तभी Pt. J.L. Nehru द्वारा पेश की हुई "उद्देशिका" को संविधान की प्रस्तावना या Preamble माना गया।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका (The Preamble Of Indian Constitution)
यह एक वैधानिक दस्तावेज है इसमें संघ के विधानों के तत्व, प्रशासनिक,न्यायिक, नागरिकों के मूल अधिकार और कर्तव्यों, नियंत्रण व्यवस्था, केंद्र और राज्यों के बीच व्यवस्था, संविधानिक संशोधन और उसकी प्रक्रिया इत्यादि सम्मिलित होता है।
प्रस्तावना संविधान के उद्देश्यों को उजागर या स्पष्ट करती है जहां पर विधानों,प्रावधानों या उपबन्धो की व्याख्या सुस्पष्ट न हो वहां उसकी व्याख्या के लिए उद्देशिका का उपयोग किया जाता है यह एक प्रकार से स्रोत के रूप में कार्य करती है इसीलिए संविधान की प्रस्तावना को "संविधान की कुंजी" कहा जाता है।
हमारे भारत के संविधान की प्रस्तावना की शुरुवात "हम भारत के लोग" से होती है जिसका तात्पर्य है कि भारत की जनता ही सर्वोपरि है जितनी भी भारतीय संविधान की शक्तियों का स्रोत जनता है इसीलिए भारत को "लोकतांत्रिक देश" कहा जाता है।
"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:
- सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,
- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
- प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
प्रस्तावना से सम्बन्धित संशोधन और Supreme Court के आदेश
सुप्रीम कोर्ट को "संविधान का रक्षक" कहा जाता है इसीलिए समय-समय पर जब भी सरकारें प्रस्तावना से सम्बन्धित संसोधनों पर बहस करती है तब सुप्रीम कोर्ट अपना मत आदेश के जरिए स्पष्ट करता है और अपनी टिप्पणियां देता है ताकि यही वाद-विवाद की प्रतियां भविष्य में भी काम आएं।
- संविधान का Article 368 के तहत संसद प्रस्तावना को संशोधित कर सकती है लेकिन प्रस्तावना का वह भाग जो संविधान के मूल ढाँचे के अंतर्गत आता है वह अपरिवर्तनीय है अर्थात उसपर कोई संशोधन नहीं कर सकते हैं।
- "प्रस्तावना का वैधानिक महत्त्व नहीं है इसीलिए इसे संसोधन नही किया जा सकता" इस निर्णय का आदेश साल 1957 में Union of India vs Madan Gopal,1957 में किया गया था।
- साल 1960 में Berubari Union Case में Supreme Court ने निर्णय दिया कि जहां भी संविधान की भाषा संशयपूर्ण लगे वहां प्रस्तावना वैधानिक निर्णयों में सहायता करती है। हालांकि इसी निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना है।
साल 1973 में उच्चतम न्यायालय ने Kesavananda bharati vs Kerala State के निर्णय में प्रस्तावना को संविधान का अंग माना है और यह भी कहा कि संसद(Parliament) इस पर संशोधन कर सकती है।
लेकिन न्यायालय द्वारा संशोधन की कुछ शर्ते बताई गई जैसे कि:- संसद संविधान के मूल ढांचे को नकारात्मक परिवर्तन नहीं कर सकती अर्थात स्पष्ट है कि संसद ऐसा संशोधन कर सकती है जिससे मूल ढांचे का विस्तार और मजबूतीकरण हो।
प्रस्तावना में अब तक केवल एक बार 1976 में संशोधन किया गया है 42वें संविधान संशोधन के अंतर्गत संविधान की प्रस्तावना में 3 नए शब्द क्रमशः
- समाजवादी
- पंथ निरपेक्ष
- अखंडता
जोड़े गए।
संविधान की प्रस्तावना में प्रमुख शब्दों के अर्थ
प्रभुत्त्व संपन्न(सर्व सत्ताधारी): प्रभुत्व संपन्न का अर्थ है कि संविधान स्वयं में सर्वोपरि है किसी भी बाहरी या विदेशी ताकत का संविधान पर कोई प्रभाव नहीं है। कोई भी बाहरी देश भारत को आदेशित नही कर सकता है।
समाजवाद:- समाजवाद की निश्चित परिभाषा तय कर पाना मुश्किल है सरल शब्दों में समझा जाए तो समाजवाद से संबंध ऐसी व्यवस्था से है कि प्रोडक्टिविटी के सारे साधन राज्य के आधीन या नियंत्रण में होंगे लेकिन भारतीय समाजवाद बहुत घुला मिला है अर्थात मिश्रित अर्थव्यवस्था है।
अखंडता:- इससे तत्यपर्य यह कि जिसको खंडित न किया जा सके, भारत एक संघ है जिसे कभी भी विभाजित नही किया जा सकता है।
पंथ निरपेक्ष/धर्म निरपेक्ष:भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है चाहे हिंदू,मुस्लिम,सिख,ईसाई या अन्य कोई धर्म हो सबका बराबर सम्मान है किसी एक धर्म का विशेष महत्त्व नहीं है दूसरे शब्दों में कहें तो भारत का कोई राष्ट्रीय धर्म नही है सभी धर्मों के प्रति तटस्थता एक समान है।
लोकतांत्रिक:- लोक तंत्र अर्थात लोगों द्वारा बनाया गया तंत्र या सिस्टम, भारत में जनता द्वारा सरकार को चुना जाता है यहां जनता सर्वोपरि है।
गणतांत्रिक: गणतंत्र का मतलब है भारत का मुखिया अर्थात राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुना जाता है यहां वंशानुगत पद की व्यवस्था नहीं है।
न्याय:- प्रस्तावना में न्याय को तीन तरह से समझना चाहिए
- सामाजिक न्याय
- आर्थिक न्याय
- राजनैतिक न्याय
स्वतंत्रता: लोगों की सामान्य व्यक्तिगत गतिविधियों पर किसी भी प्रकार की रोकटोक की अनुपस्थिति, प्रस्तावना हर व्यक्ति के मूल कर्तव्य,अधिकार खुद की अभिव्यक्ति, धार्मिक उपासना और विश्वास की स्वतंत्रता को प्रतिरक्षित करती है।
समता: संविधान या उसकी प्रस्तावना हर नागरिक को समान अवसर और स्थिति प्रदान करती है इसे ही समता कहा जाएगा।
इस उपबंध के तीन आयाम हैं:-
- नागरिक
- राजनैतिक
- आर्थिक
बंधुत्व (भाईचारा) एक दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना,एकल नागरिकता के माध्यम से संविधान हमें बंधुत्व की भावना से बांधे रखता है।
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- संविधान क्या है? भारतीय संविधान का निर्माण - The Indian Constitution
- भारत के संविधान में किस देश से क्या प्रावधान लिया गया है - The Source of Indian Constitution
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निष्कर्ष
भारतीय संविधान की प्रस्तावना को "संविधान की आत्मा" कहा जाता है 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के साथ ही इसका महत्व बढ़ गया। प्रस्तावना भारतीय संविधान का आधार है इसमें लिखित प्रत्येक शब्द भारत के लोकतंत्र और विविधता को दर्शाता है, प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होना चाहिए कि उसे अपने संविधान तथा खुद के अधिकारों जैसे (मौलिक कर्तव्य, मूल अधिकार) के बारे में जाने साथ ही यह भी दायित्व है कि जागरूक बने, लोकतंत्र के मायनों को समझे।