हमारे सनातन संस्कृति में भौतिक शरीर केवल एक माध्यम मात्र बताया गया है परम आनन्द की प्राप्ति तो आत्मा और परमात्मा के मेल से होती है और इस मेल के लिए आध्यात्मिक बोध और योग की आवश्यकता है सरल भाषा में कहें तो योग आपके मानसिक स्तरों को भरण कर उर्जावान और चेतना से परिपूर्ण बनाता है चेतना का जाग्रत होना इस दिशा की पहली कड़ी है।
योग का इतिहास बहुत ही प्राचीन है इसका वर्णन हमें वेदों और पुराणों में मिलता है योग की शक्तियां अलौकिक रहीं हैं इसकी क्षमता असीमित है आदियोगी यानी की भगवान शिव से जन्मी योगकालाओं के अनन्त और असंख्य तरीके हैं हर यौगिक प्रक्रिया का अलग विज्ञान है ऐसे ही योग की एक प्रक्रिया है क्रिया योग (Kriya yoga)। इस योग क्रिया के बारे में विस्तार से जानते हैं कि क्या है क्रिया योग और इसके करने की विधि और प्रकार के बारे मे।
क्रिया योग क्या है (What is Kriya yoga)
क्रिया योग का वर्णन सबसे पहले हम श्रीमद भागवत के 11वें स्कन्द में मिलता है भगवान के ध्यान का नाम और उनके प्रति समर्पित कर्म इन दोनो को मिलाकर क्रिया योग बनता है भागवत कथा में वर्णन के अनुसार महाभारत के समरकंद के समय जब अर्जुन ने विचलित होकर सारे हथियार डाल दिए और युद्ध करने से मना कर दिया कि यह तो सब अपने हैं इनका वध माधव कैसे करूं तब भगवान कृष्ण ने पार्थ को क्रिया योग की शिक्षा से दीक्षित किया इसके बाद ही अर्जुन को अपने कर्म और धर्म का ज्ञान हुआ इस योग विज्ञान की क्रिया को "कर्मयोग" और "राजयोग" से भी जानते हैं कहते हैं कि क्रिया योग से बड़ी कोई और पद्धति नही है जिससे आप अपने अंदर के सत्य को पहचान सकें। दर्शन के नजरिए से देखा जाए तो यह एक तीव्र मार्ग है सत्य की खोज तक पहुंचने के लिए। अन्य यौगिक प्रक्रियाओं में जो आयाम आपको एक वर्ष में मिलता है वह इस योग से एक पल में ही प्राप्त हो जाएगा।
क्रिया योग की शिक्षा काफी समय तक विलुप्त हो गई थी आधुनिक समय में किताब के माध्यम से इस विद्या को पहुंचाने का श्रेय महर्षि योगानंद (एक योगी की आत्मकथा) को जाता है हालांकि इसका प्रचार प्रसार लाहिरी महाराज ने 1861 में किया था जो कि महावतार बाबाजी के शिष्य हैं महावतार बाबा एक ऐसे सिद्ध संत हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि उनकी आयु लगभग 2000 सालों से भी ज्यादा है।
महर्षि योगानंद की किताब के अनुसार यह एक वैज्ञानिक प्रणाली है जो आत्मबोध, वास्तविकता का परिचय कराती है अगर आधारभूत बात करें तो यह मन के अंदर की कार्मिक प्रक्रिया है जिससे शरीर के अंदर प्रवाहित खून में कार्बन को हटाकर आक्सीजन की मात्रा का संचार होता है और वही आक्सीजन के कण "रीड़ की हड्डी" में स्थित चक्रों को नवशक्ति प्रदान करता है मनुष्य की चेतना का विकास करता है।
सांस लेना और चेतना का सम्बन्ध गणितीय सूत्रों पर आधारित है क्रिया योग के अनुसार मानसिक एकाग्रता आपके धीमे सांस लेने की प्रक्रिया के आधीन है दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सांस तंत्र जितना धीमा कार्य करेगा "कंसंट्रेशन पावर" उतनी मजबूत होगी और सांस की गति तेज होने पर यह काम, लोभ, क्रोध जैसे कारकों को बढ़ावा देती है।सदगुरु जग्गी महाराज के अनुसार शरीर के चार आयामों में एक है "जीवन ऊर्जा" और उसी से जुड़ा है क्रिया योग तो इसे करने के लिए सबसे पहले आत्म अनुशासन का होना जरूरी माना गया है।
क्रिया योग ध्यान की विधि
महर्षि पतंजलि के अनुसार "क्रिया योग शारीरिक अनुशासन, मानसिक नियंत्रण और ॐ पर ध्यान केंद्रित करने से निर्मित है"
अर्थात प्राणायाम के माध्यम से प्राण वायु का आंतरिक केंद्रों में संचार और सूत्रों का मिश्रण ही क्रिया योग के करने की विधि है यह तो एक सामान्य बात बताई गई है लेकिन शुरुआत से इसके करने के कुछ नियम इस प्रकार है इन नियमों के बिना यह योग असफल माना जाएगा।
- इस योग प्रक्रिया के शुरू करने के पहले 5 घंटों तक खाली पेट रहना अनिवार्य है प्यास लगने पर बहुत ही सीमित मात्रा में जल का सेवन कर सकते हैं। इसके पीछे का तर्क यह है कि अगर आप भोजन की मात्रा लिए होते हैं तो उसको पचाने के लिए शरीर की अधिकांश ऊर्जा उसी में नष्ट हो जाएगी वही दूसरी तरफ आलस्य की संभावना है जैसे ही आप आंख बन्द करेंगे वैसे ही नींद आने लगेगी।
- क्रिया योग दिन में 2 बार करना अनिवार्य है एक बार सुबह और दूसरी बार शाम के वक्त, साधारणतया देखा जाता है कि जब आपने सुबह योग किया है तो ऊर्जा मूलाधार चक्र के ऊपर चली जाएगी और शाम ढलते-ढलते नीचे आने लगती है तब शाम के वक्त करने से पुनः ऊर्जा जाग्रत होकर चक्र से ऊपर पहुंच जाएगी।
- इसका निरंतर अभ्यास अति आवश्यक है बहुत ही जल्दी बदलाव की उम्मीद करना ठीक नहीं है जब आप ध्यान अवस्था में हों तब यह नहीं सोचना चाहिए कि शरीर में कम्पन या कुछ तीव्र सा महसूस हो रहा है या नही कृपया धैर्यता बनाए रखें जितने भी ऋषि मुनियों ने इस साधना को किया है सबने एक लंबा वक्त दिया है तब कहीं जाकर उन्हें सफलता मिली है। यह एक कठिन प्रक्रिया है तो बहुत ज्यादा आराम के आदी नहीं होना चाहिए क्योंकि इसको करते समय कई आयाम से गुजरना होता है।
- ध्यान योग के लिए सबसे अति आवश्यक आसन और माहौल में शान्ति का होना है बैठने के लिए आसन लकड़ी का हो और उस पर कोई बिछौना या कंबल डाल दें जो कि नर्म या गद्देदार होना चाहिए। इस बात का ख्याल रखना जरूरी है कि जब आप बैठें तो आपके शरीर का कोई भी अंग न तो किस दीवार से और न ही जमीन पर छू जाएं क्योंकि जब आप मेडिटेशन कर रहे होंगे तब आन्तरिक ऊर्जा का संचार होगा और किसी वस्तु में छूने की अवस्था में उर्जा के स्थानांतरित होने के आसार होते हैं।
- ध्यान शुरू करने से पहले 5 से 10 मिनट अपने आपको आराम दायक अवस्था में लाएं उसके बाद ही ध्यान की शुरूवात करें और ध्यान खत्म करने के बाद कम से कम 20 मिनट तक आंख को बन्द कर शांति से बैठें और धीरे धीरे आंख खोलें क्योंकि आंतरिक ऊर्जा का प्रसार तीव्र होता है उसे पहले शान्त होने दें।
क्रिया योग कैसे करें
यह वैज्ञानिक योग प्रक्रिया है बिना गुरु के इसकी दीक्षा फलीभूत नही होगी इसे अभी तक गुरु शिष्य परम्परा ने ही जिन्दा रखा है वर्तमान में सामान्य जन तक यह क्रिया सबसे पहले महावतार बाबा ने लाहिड़ी महाशय को दीक्षित किया और उनके बाद महाशय के शिष्य बने स्वामी श्री युक्तेश्वर जी और स्वामीजी के शिष्य बने परमहंस योगानंद जिन्होंने इस क्रिया योग पर किताब भी लिखी है। हम आपको शुरूवात में करने के लिए कुछ तरीके बता रहें हैं।ऊपर लिखी हुई विधियों का अनुपालन करते हुए जब आप अपना आसन जमा लें तो कुछ दिनों तक आंख बंद कर जो मन में चल रहा है उसी पर मनन करते रहिए।
शुरुवाती दौर में हो सकता है बैठना मुश्किल हो जाए लेकिन इसके लिए लगभग 1 महीने पहले से व्यायाम और योग करते रहना है। जब आप बहुत ही सहज तरीके से आसन में 2 घण्टे बिताने लग जाएं तब ध्यान लगाना शुरू कीजिए और खुद से सवाल कीजिए कि आप कौन हैं? क्या आप सिर्फ शरीर हैं या आप केवल नाम है? बार बार पूछते रहिए यह प्रतिदिन सवाल करना है जब तक आप इस आयाम से आगे न बढ़ जाएं।
इस आयाम के पूर्ण होने पर आप अपनी प्राणवायु या स्वांस पर ध्यान दीजिए जब आप पूरी तरह इस पर फोकस हो जाएंगे तो पाएंगे कि आक्सीजन धीरे-धीरे रक्त में धुलकर अशुद्धियों जैसे टॉक्सिन और कार्बन डाइऑक्साइड इत्यादि पदार्थों को धीरे धीरे बाहर करने लगेगा जिससे की आक्सीजन का संचार बढ़ेगा शरीर की सुक्ष्म नाड़ियां शुद्ध हो जाएंगी और ऊर्जा का संचार पहले से बेहतर हो जाएगा इससे आपका मध्य मस्तिष्क और कुंडलिनी जागृत होंगी। महीनों के बाद अगर आप अपनी प्राणवायु पर लगातार कंसंट्रेट करते रहेंगे तो एक समय आएगा कि आपको अंतर्मन में यह एहसास होगा कि ऊर्जा का संचार रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से से ऊपर की ओर हो रहा है और जब इस प्रकार का अनुभव शरीर में हो रहा हो तो मन में ही यह दोहराएं कि "मैं शरीर नही हूं" करीब 10 मिनट तक यही बात दोहराना है।
दूसरे चरण में जब मन को पढ़ने और जानने के साथ समझने लगेंगे और उसके विश्लेषण करने की स्थिति तक पहुंच जाएंगे तब यह एहसास करना है कि आप मन भी नही हो यह संकल्प अंतर्मन में आने दीजिए और दोहराइए कि "मैं मन नहीं हूं" इसे आप कम से कम आधे घण्टे तक करना है और हर 2 से 3 दिनों के समय बढ़ाते जाइए अगर आप सारे चरणों को नियम अनुसार फॉलो करेंगे तो कुछ ही दिनों बाद एक नई दिशा और आयाम का उदय होगा आपके शरीर में योग साधना की ऊर्जा एकत्र हो जाएगी आपकी एकाग्रता, बुद्धिमत्ता, दुःख दर्द परेशानियां आपको छू भी नहीं पाएंगी।
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समापन
यह जानकारी हमने कुछ किताबों और इंटरनेट के आधार पर दी है जाहिर है कि क्रिया योग एक व्यापक विषय है इतने कम शब्दों में पूर्ण जानकारी देना मुमकिन नही है फिर भी हमने प्रयास किया है कि लगभग एक सारांश के तौर पर इस योग पद्धति के परिचय से अवगत हों। पढ़ने के बाद आपकी टिप्पणी का इंतजार रहेगा धन्यवाद!