सनातन संस्कृति एवं सभ्यता में देवताओं के 33 कोटि माने गए हैं उन देवताओं में त्रिदेवों में भगवान शंकर की महिमा अद्वितीय है वह संहार अथवा मृत्यु के देवता हैं।
सर्वेश्वर के ही 12 स्वयंभू प्रतिरूप ज्योतिर्लिंगों के रूप में विद्यमान हैं। ज्योतिर्लिंगों में चतुर्थ क्रम में "ओंकारेश्वर" का स्थान है जानते हैं ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कहानी और इतिहास के साथ मन्दिर के रहस्य और कहां स्थित है कैसे पहुंच सकते हैं इत्यादि के बारे में।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग Omkareshwar Jyotirlinga
ओंकारेश्वर ममलेश्वर स्वयंभू ज्योतिपुंज भगवान भोलेनाथ का चतुर्थ क्रम का ज्योतिर्लिंग है जिस "ॐ" के जाप से समस्त ब्रह्माण्ड की ऊर्जा का विस्तार होता है सृष्टि रचना करने वाले श्री ब्रम्हदेव के मुख से पहला उच्चारित होने वाला शब्द भी "ओम" है। वेदों का पठन पाठन भी इस शब्द के बिना अधूरा है उस ॐ का भौतिक वास इसी ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में है इस ओंकारेश्वर क्षेत्र में 68 तीर्थ स्थान और 108 शिवलिंग, तैंतीस कोटि देवी देवता सहित 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं उनके नाम
- ओंकारेश्वर
- ममलेश्वर
यह दोनो ज्योतिर्लिंग को मिलाकर एक ही माना जाता है। यह स्वयंभू पवित्र माता नर्मदा से निकले हैं माता नर्मदा का हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर कहां स्थित है
यह सनातन मन्दिर देश के दिल मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले के मान्धाता पहाड़ी पर स्थित है इस पहाड़ी का आकार "ॐ" जैसा प्रतीत होता है प्राचीन काल में इस जगह को महिष्मति भी कहा जाता था जो 16 जनपदों में से एक अवंती जनपद की राजधानी थी और पुराणों में मान्धाता को ही वैदूर्यमणि के नाम से वर्णन मिलता है। इस जगह का इतिहास में भील जनजाति की वजह से काफी वर्णन मिलता है और इस जगह को बसाने में भीलों का ही योगदान है।
ओंकारेश्वर मन्दिर कैसे पहुँचें
मध्यप्रदेश के महानगर इन्दौर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर यह पवित्र मन्दिर स्थित है इन्दौर पहुंचकर बस और टैक्सी की मदद ले सकते हैं महाकाल उज्जैन से दर्शन कर जाने वाले यात्री भी इन्दौर से होकर जाएंगे। ट्रेन से यात्रा करने वाले भक्त गण ओंकारेश्वर रोड रेलवे स्टेशन का टिकट ले सकते हैं उज्जैन या इंदौर से इस स्टेशन की कनेक्टिविटी आसान है बाहर से आने वाले यात्री उज्जैन या इन्दौर उतरकर यहां के लिए रेल पकड़ें। अगर आप देश के किसी कोने से फ्लाइट के माध्यम से ओंकारेश्वर ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने आना चाहते हैं तो सबसे पास का देवी अहिल्याबाई एयरपोर्ट इन्दौर है।
ओंकारेश्वर मन्दिर का इतिहास
इस ज्योतिर्लिंग का स्थापना वर्ष क्या था ऐतिहासिक नजरिए से कह पाना मुश्किल है लेकिन लगभग 1200 साल पहले सन 1063 में मालवा के पवार वंश के राजा उदयादित्य ने चार विशेष प्रकार के पत्थरों को स्थापित कर मन्दिर की स्थापना कराई थी। 11वीं शताब्दी में मोहम्मद गजनी ने और बाद में औरंगजेब ने मंदिर में आक्रमण कर क्षतिग्रस्त कर दिया था। 1195ई. में राजा भरत सिंह चौहान ने इस स्थान को पुनर निर्माण कर जीर्णोद्धार किया इसके बाद लगभग मालवा में सिंधिया,परमार और कई भील राजाओं का शासन रहा जिन्होंने मन्दिर की देखरेख रखरखाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
होलकर वंश की रानी माता अहिल्याबाई ने प्रभु ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के आसपास लगभग 22 घाटों का निर्माण किया था प्रतिदिन वह पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण और पूजन कर नर्मदा में विसर्जित करती थीं वह अपने किसी भी आदेश में खुद के हस्ताक्षर न कर "प्रभु शंकर का आदेश" लिखती थी।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर की पौराणिक कथा
इन ज्योतिर्लिंग की अनेकों पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं लेकिन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मुख्यत तीन कहानियां हैं।
1. एक बार नारद जी से विंध्याचल पर्वत ने अहंकार बस कहा कि देखिए देवर्षि मेरा कद कितना विशालकाय है और पर्वतों का राजा होने के साथ साथ सर्वगुण संपन्न हूं नारद पर्वत की बात सुनते रहे उसके बाद जब बात समाप्त हुई तो उन्होंने कहा कि तुम आकार में सुमेरु पर्वत का मुकाबला नहीं कर सकते उसका शिखर तो देवताओं के लोक को छूता है और देवता उसमे विराजमान है फिर तुम कैसे सर्वश्रेष्ठ हो गए यह सुनकर पर्वतराज विंध्य सोच के पड़ गए और वह समझ गए कि उनका अहंकार हार चुका है।
लेकिन पर्वत ने हार नहीं मानी और मन ही मन प्रभु भोलेनाथ की तपस्या करने का निर्णय लिया और नारद जी के प्रस्थान होते ही भगवान शिव की तपस्या में तल्लीन होकर महान हो गए लगभग अर्धवर्ष बीतने के बाद भोलेबाबा प्रकट हुए और विंध्याचल को वरदान मांगने के लिए कहा बदले में उन्होंने बुद्धि विवेक मांगा इतने में ही कुछ ऋषियों संतों का आगमन होता है और वह भोलेनाथ से विनती करते हैं कि आप यहीं विराजमान हो जाइए तब से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिग के रूप में वहीं स्थापित हो गए और विंध्याचल द्वारा जो पार्थिव शिवलिंग बनाया गया वह ममलेश्वर ज्योतिर्लिग कहलाए।
2. महिष्मति के राजा मान्धाता भोलेनाथ के अनन्य भक्त थे उन्होंने भगवान शिव का सालों तक तप किया परिणामस्वरूप भक्तवत्सल प्रभु प्रकट हुए और राजा को आशीर्वाद दिया। राजा मान्धाता ने भोलेभंडारी से वरदान स्वरूप उन्हें ही स्थापित होने का आग्रह किया तब से ज्योतिर्लिग के रूप में ओंकारेश्वर में विराजमान हो गए।
3. एक बार देवासुर संग्राम हुआ और देवताओं की हार हुई तब सभी देवतागण ने ओंकारेश्वर में तपस्या की तब भगवान प्रकट हुए और असुरों का विनाश किया तब से यही पर विराजमान हो गए।
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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर से जुड़े रहस्य
पौराणिक आधार पर यहां के बारे कई रहस्यमई बातें प्रचलित हैं।
- कहते हैं कि शाम के बाद रात्रि निद्रा के लिए भगवान शिव इस मन्दिर में आते हैं
- सारे 33 कोटि देवी देवता परिवार सहित इस क्षेत्र में विराजमान हैं।
- रात्रि में देवी पार्वती और महादेव द्यहां चौसर खेलते हैं।
- यहां की शाम की आरती सारे ज्योतिर्लिंग में सबसे ज्यादा प्रचलित है।
- महाशिवरात्रि में 251kg के पेड़े का भोग लगाया जाता है।
समापन
ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर के संदर्भ में समस्त जानकारी इंटरनेट में उपलब्ध लेखों के शोध के आधार पर दी गई है पाठकों से अनुरोध है किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य बताएं।