वृन्दावन के भोंदू की सच्ची कहानी जिसके पीछे श्रीकृष्ण भी दौड़ चले गए : Vrindavan Ke Bhondu ki kahani (Story)

वृन्दावन की महिमा अपरंपार है भगवान श्री कृष्ण की महिमा यहां की रज में बसी है यह माता राधा रानी की नगरी है आज कलयुग मे भी यहां की प्रकृति में मुरलीधर और किशोरी जी बसते हैं।

A captivating scene depicting the true story of the Bhondu from Vrindavan, where Lord Krishna runs after him.

वैसे तो अनेकों कहानियां है भगवान और भक्तों की लेकिन यह कहानी कुछ अलग है और ज्यादा नहीं कुछ 5 से 6 दशक पुरानी है आइए रूबरू कराते हैं आप पाठकों को वृन्दावन के भोंदू की कहानी से।

वृन्दावन के आश्रम के गौसेवक भोंदू की कहानी

लगभग 70 बरस पहले वृंदावन में एक गुरुजी के नाम से विख्यात कथाकार आश्रम में रहते थे उनकी वाणी इतनी मधुर थी कि जब वह कथा कहते थे तो श्रोता की नेत्रों के आगे चलचित्रो का प्रतिबिंब बन जाता था, उन्हीं गुरु भगवान के यहां गौशाला में एक सेवक रहता था जिसका नाम था भोंदू, इस नाम के पीछे की वजह यह थी कि वह एक दम भोला भाला और गुरु जी पर अटूट विश्वास करने वाला था उसे गौसेवा और कथा सुनने के अलावा और कोई काम न था।

जब भोंदू ने गुरुदेव के मुख से श्रीकृष्ण कथा सुनी

नित्य रूप से आश्रम में गुरुदेव भगवान कथा कहते थे भोंदू भी बड़े मन से सुनता था एक प्रसंग में  श्रीकृष्ण जी के सुन्दरता का व्याख्यान हो रहा था और उनके गौ चराने को लेकर कथा में कहते हैं कि वह भांडीर वन में गौ चराने आते थे तब भोंदू को लगा कि वह भी तो उसी वन में गाय चराने ले जाता है उसे तो कभी नहीं मिले भगवान, उसको लगा कि गुरु जी कोई कथा नहीं बता रहे हैं यह कोई अभी की कहानी है और उसे लगा की वह ही अभागा है जो अभी तक उसे ठाकुर जी नही मिले। भोंदू मन ही मन सोचता है कि शायद उसने ही ध्यान नहीं दिया हो कल से जब वह गौ चराने भांडीर वन जाएगा तो अवश्य ध्यान देगा उसे गुरु जी की वाणी पर अटूट विश्वास था।

भोंदू को मिले भांडीर वन में सखा श्रीकृष्ण

अगले दिन सुबह होते ही भोंदू गायों को लेकर भांडीर वन पहुंचता है गायों को चरने छोड़ चौतरफा वह कान्हा को ढूंढने लगता है उसे इतना विश्वास था कि यहीं कहीं होंगे बस वही नहीं देख पा रहा है वह भगवान को इतने भोलेपन से ढूंढ रहा था कि ठाकुरजी से रहा नही गया।

तभी अचानक भोंदू की नजर सामने से आ रहे गायों के समूह के बीच में पड़ती है वहां मौजूद भगवान श्याम वर्ण के कृष्ण पीताम्बरी पहने चले आ रहे थे भोंदू देखकर उनको खो सा गया और मारे खुशी के उछल पड़ा, उनके कटाक्ष नेत्र, मोर मुकुट और चंदन की सुगंधी से भरपूर स्वरूप को देखकर भोंदू निमग्न हो गया पास में द्वारकानाथ को पाकर उसने कहा कि आप वही ठाकुर जी हो न जिसके बारे में गुरुजी कथा सुनाते हैं तब भगवान ने उत्तर दिया हां हम वही श्याम सुंदर हैं।

bhagwan Krishna

भोंदू - हमारे गुरुजी जब आपके स्वरूप का वर्णन करते हैं तो लगता है आप कितने सुंदर होंगे लेकिन सामने से देखने पर पता चला कि आप उनके बताने से लाख गुना सुंदर हो।

श्रीकृष्ण - सिर्फ बाते ही करोगे कि कुछ खिलाओगे पिलाओगे?

भोंदू - आप मेरे हाथ का खाओगे , और भोंदू जो अपने लिए रोटी लेकर आया था पोटली में उसने भगवान के सामने प्रस्तुत कर दी और केशव ने सारी रोटियां खा ली।

खाने के बाद भोंदू से बोले कि और खिलाओ तब उसने कहा कि इतना ही मैं खाता हूं तब माधव ने कहा कि फिर तो कल से और रोटियां लेकर आना हमे बहुत भूख लगती है।

भोंदू और भगवान अपनी अपनी गैया लेकर प्रस्थान कर गए भोंदू इतना भोला था कि उसे लगा कि ठाकुर जी ऐसे ही आते हैं और सबसे मिलते हैं आश्रम पहुंचकर उसने गुरुजी को भी नही बताया क्योंकि उसे लगा कि यह सामान्य बात होगी।

जब भोंदू ने बताया गुरुजी को ठाकुर जी के बारे में 

रात बीती अगले दिन रोज की तरह भोंदू फिर गायों को लेकर जाने के पहले रसोइए से खाना लेने गया और तब ज्यादा खाना रखने को लेकर रसोइए ने कहा कि तू तो इतना खाता नहीं है फिर किसके लिए इतना भोजन ले जा रहा है और इतने में गुरुजी भी आ जाते हैं और गुरु महाराज भी पूछते हैं कि भोंदू तेरी तो इतनी खुराक नही है तब भोंदू ने बहुत ही सहज भाव से जवाब दिया कि भांडीर वन में मैं जब जाता हूं तो वहा ठाकुर जी भी आते हैं उन्होंने मुझसे भोजन के लिए कहा है।

madhu sudan

यह सुनकर गुरुदेव ने कहा कि अरे कोई उनका हुलिया बनाकर तुम्हे छल रहा है तब भोंदू ने उनके स्वरूप का विस्तार करते हुए कहा कि जहां भी उनके चरण पड़ते हैं तो वह जगह खिल जाती है और सुगंधित हो उठती है कमल जैसे नेत्र है गुरूजी मन में विचार किया कि कोई और होता तो शायद नहीं मानते लेकिन भोंदू जैसा निश्छल और भोला इंसान झूट नहीं बोल सकता तब गुरुजी ने कहा कि जब तुम आज ठाकुरजी से मिलना तो उन्हें कहना कि तुम्हारे गुरुजी ने बुलाया है यह सुनकर भोंदू गदगद हो उठा क्योंकि उसे लगा कि यह काम तो किसी शिष्य को भेजकर भी कर सकते थे फिर गुरुजी ने मुझे कहा है वह बहुत खुश हुआ।

जब ठाकुरजी मिले गुरुजी से

भोंदू तो एक दम खुश होकर नाचता फिरता जाकर पहुंचा भांडीर वन वहां पर जैसे ही श्याम सुंदर मिले तो उन्होंने कहा कि भोंदू खिलाओ कुछ भूख लगी है तब भोंदू तुरंत पत्तल खाने की सजाने लगा और साथ ही बोला कि मेरी एक प्रार्थना है कि मेरे साथ आश्रम चलिए वहा गुरु जी से मिल लीजिए तब भगवान ने जवाब दिया कि देख भोंदू हम किसी से नहीं मिलते तुझसे मिएंगे बस तेरे साथ खाएंगे, खेलेंगे लेकिन गुरूजी से नही मिलेंगे, तब भोंदू ने चरण पकड़ लिए और कहा कि मैं तो आपको जनता तक नहीं वो तो गुरूजी ने आपके विषय में बताया कि आप भांडीर वन आते हो गइया चराने तभी तो मैं आपसे मिल पाया, जिन गुरुजी ने आपके बारे में बताया समझाया वह आपको बुला रहे हैं आप मना न करो चलो न मेरे साथ तब मधुसूदन ने कहा कि देख भोंदू तू जो कहेगा हम सब करेंगे लेकिन तेरे अलावा किसी और से नही मिलेंगे चाहे गुरुजी हों या उनके भी गुरुजी हों।

ठाकुर जी रोटी खा रहे थे गुड़ के साथ में भोंदू ने गुस्से में रोटी खींच ली और बोला कि ये भी मत खाओ यह भी गुरूजी की है पत्तल भी उठा लिया और  कहा कि यह भी गुरुजी के यहां का बना है और कहा कि सुनो ठाकुर जी मुझे इस योग्य गुरुजी ने बनाया है और अगर उनसे नही मिलना तो मेरी भी वचन सुन लीजिए कि कल से यहां मत आना मुझे भी आपसे नही मिलना।

ठाकुर जी बोले कि तू अभी जनता नही है बड़े बड़े लोग तपस्या करते हैं हिमालय जाकर मेरे दर्शन के लिए और हम तेरे सामने इतनी सहजता से बैठे हैं और कह रहा कि कल से नही मिलेगा, तब भोंदू ने कहा कि मैंने अपने गुरु की सेवा की है परिणाम स्वरूप आपके दर्शन हुए इसका मतलब कि गुरु की सेवा तपस्या के बराबर है।

इतना कहकर भोंदू जाने लगा भगवान को छोड़कर, तब भगवान बोले कि और भोंदू रुक तो जा तब उसने कहा कि अब वह तभी रुकेगा जब आप यह वचन देंगे कि गुरुदेव से मिलेंगे तब भगवान श्रीकृष्ण पीछे दौड़े और भोंदू के कमर पकड़कर चढ़ गए और कहा कि तू मत जा छोड़कर जहां ले चलेगा वहा जाएंगे चल ले चल गुरु जी के पास।

आश्रम में गुरुदेव भोंदू का रास्ता देख रहे थे तभी क्या देखते हैं कि गायों के झुंड के बीच पीठ में भोंदू मुरलीधर को विराजे चला आ रहा है क्या ही अलौकिक दृश्य था यह दृश्य देखकर गुरुदेव मंत्रमुग्ध हो गया जब होश आया तो नंद नंदन सामने खड़े थे उठते ही गुरुजी ने भोंदू को प्रणाम किया और कहा कि तेरी भक्ति को प्रणाम करता हूं कि आज तेरे कारण स्वयं त्रिलोकीनाथ मेरे आश्रम आए।

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Amit Mishra

By Amit Mishra

नमस्कार! यह हमारी टीम के खास मेंबर हैं इनके बारे में बात की जाए तो सोशल स्टडीज में मास्टर्स के साथ ही बिजनेस में भी मास्टर्स हैं सालों कई कोचिंग संस्थानों और अखबारी कार्यालयों से नाता रहा है। लेखक को ऐतिहासिक और राजनीतिक समझ के साथ अध्यात्म,दर्शन की गहरी समझ है इनके लेखों से जुड़कर पाठकों की रुचियां जागृत होंगी साथ ही हम वादा करते हैं कि लेखों के माध्यम से अद्वितीय अनुभव होगा।

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