इस 'शिक्षक दिवस' के मौके जानिए सनातन धर्म के प्राचीन ग्रंथों में उल्लिखित गुरु शिष्य परम्परा के बारे में : Teachers Day Special (5 September 2024)

हम सब जानते हैं कि शिक्षक दिवस की शुरुवात 1963 से हुई, भारत के पूर्व राष्ट्रपति तथा महान शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस 5 सितंबर (Teachers Day) के सम्मान में मनाया जाता है, क्या आप जानते हैं कि सनातन धर्म में गुरु शिष्य की परम्परा कितनी पुरानी है आइए जानते हैं पौराणिक कथाओं में प्रचलित गुरु और शिष्य संस्कृति के बारे में।

guru shishya parampra in pauranik kal

आधुनिक भारत की आजादी के बाद अपनी पुरानी परंपरा की ओर अग्रसर होते हुए शिक्षक और शिक्षा की महत्ता को समझाने के लिए इस दिन को मनाने की घोषणा की गई है, बाकी दिन तो मनाए ही जाते हैं लेकिन जो नई पीढ़ी की बौद्धिकता का सृजन करते हैं सीख देते हैं ऐसे शिक्षकों और गुरुओं के लिए विषेश दिन की प्रथा हजारों साल पुरानी रही है।

सनातन धर्म में "गुरु और शिष्य" पद्धति का महत्त्व

पौराणिक किताबों में अनेकों ऐसी कहानियां हैं जो गुरु और शिष्य के महत्ता को दर्शाती हैं चिरकाल से ही देवों और असुरों का अस्तित्व माना जाता है और इन्हीं के साथ इनके गुरुओं का जिक्र भी अक्सर कथाओं में होता है देवों के गुरु को बृहस्पति और दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को कहा जाता है। 

ऐसी मान्यता है कि गुरु बृहस्पति ने देवताओं के राजा इंद्र को शक्तिशाली बनाने के लिए कई यज्ञ और हवन कराकर कई सारी शक्तियों का स्वामी बनाया, वहीं शुक्राचार्य ने शिवजी से प्राप्त संजीवनी से कई मृत दैत्यों का जीवन समाप्त होने से बचाया, इन गुरुओं ने अपने शिष्यों को वर्चस्वशाली और शक्तिशाली बनाने के लिए अनेक असाध्य कार्य भी करवा डाले, शिष्य कम योग्य होने पर भी गुरुओं ने शिक्षा और ज्ञान के आधार पर मार्गदर्शन कर जीवन को उत्कृष्ट बनाया।

वैसे इस शिक्षक दिवस के खास मौके पर हम आपको कुछ गुरु शिष्य की जोड़ियों के बारे में बताएंगे। गुरु में 'गु' का अर्थ होता है अंधकार और 'रू' मतलब प्रकाश से है अर्थात जो अंधकार से प्रकाश को ओर ले जाए वही सही मायनों में गुरु है।

हिन्दू धर्म के कुछ प्रचलित गुरु शिष्य

पौराणिक काल में ऋषि मुनि छात्रों के अध्ययन के लिए जंगल में ही आश्रम का निर्माण कर शिक्षा प्रदान करते थे और साथ ही सबको स्वालंबन की शिक्षा देते थे अर्थात आश्रम के सारे काम भी छात्रों के सहयोग से ही पूर्ण किए जाते थे और यह आश्रम पाठशाला निशुल्क होते थे जो राजाओं और लोगों के दान पर चलते थे जिन्हे गुरुकुल भी कहा जाता था। गुरुकुल के अपने बनाए नियम होते थे वहां राजकुमार और अन्य लोगों में कोई भेदभाव नही होता था।

  • हिंदू ग्रंथों में महाकाव्य रामायण में श्रीराम के दो गुरुओं का उल्लेख मिलता है गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र जिन्होंने श्रीराम को शिक्षा तथा अस्त्रों की शिक्षा प्रदान की थी।
  • भगवान श्रीकृष्ण के गुरुओं में महर्षि संदीपनी मुनि का विशेष स्थान है और साथ ही गणित ज्ञान की शिक्षा महर्षि कणाद ने प्रदान की।
  • पांडुओं के श्रेष्ठ अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य थे, कौरवों को भी शिक्षा इन्होंने ने ही प्रदान की।
  • गंगा पुत्र और महाभारत के पितामह भीष्म के गुरु परशुराम और बाल काल में गुरु बृहस्पति ने शिक्षा प्रदान की।
  • भगवान परशुराम के गुरु भगवान शंकर और दत्तात्रेय जी थे।
  • इतिहासिक साक्ष्यों में देखा जाए तो आचार्य चाणक्य के गुरु उनके पिता ही थे वहीं गौतम बुद्ध के शिक्षक आलार कलाम जी थे।

कबीरदासजी ने गुरुदेव भगवान के महत्त्व को इस एक दोहे के माध्यम से व्यक्त की है इससे बढ़िया गुरु की महत्ता समझने वाली पंक्तियां शायद ही कहीं मौजूद हों।

teachers day in Vedas puranas

ये कुछ उदाहरण हैं जो प्राचीन काल में हमारी सभ्यता को दर्शाते हैं महात्माओं द्वारा गुरुकुल में शिक्षा देना और शिक्षा पूरी होने तक घर जाने की आज्ञा नहीं थी, बीच में पड़ने वाले सारे संस्कार आश्रम में ही पूरे किए जाते थे, भगवान कृष्ण और बलराम ने गुरुदीक्षा में अपने गुरु के पुत्र को जीवित किया, वहीं अर्जुन ने पांचाल राज्य के मुकुट को गुरु द्रोण के चरणों में अर्पित किया।

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Amit Mishra

By Amit Mishra

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