भारतीय संस्कृति जीवन शैली में आयुर्वेद का उतना ही महत्त्व है जितना शरीर के लिए प्राण वायु का है हजारों साल से हमारे पूर्वजों द्वारा अनेकों जड़ी बूटियों को सहेज कर रखा गया है अनेकों ऐसे पौधे थे जिसे वैदिकी परंपरा में दवाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता था लेकिन आज स्थिति यह हो चुकी है कि यही औषधियां धीरे धीरे विलुप्त हो रही हैं इनका साथ आज की मानव सभ्यता छोड़ती जा रही है जिन दवाओं के भरोसे हमारे पूर्वज एक लंबी आयु तक जीते थे उनकी प्रासंगिकता को समझ पाना इतना कठिन भी नही था।
इस लेख के माध्यम से कुछ विलुप्त की कगार पर होने वाली जड़ी बूटियों के बारे में जानेंगे और साथ ही इनका संरक्षण आधुनिक पद्धति और वैज्ञानिक मध्यम से क्या संभव हो सकता है यह जड़ी बूटियां सिर्फ हमारी संस्कृति महत्ता को ही नही प्रदर्शित करती अपितु यह हमारी धरोहरें हैं और इनको सहेज कर आने वाली जेनरेशन को उत्तम लाभदायक स्वास्थ्य प्रदान किया जा सकता है।
विलुप्त होने की कगार पर यह आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ
आज भी महर्षि चरक व शुश्रुत संहिता में लिखी बाते सारगर्भित सिद्ध होती हैं ऋषि वागभट्ट ने अष्टांग हृदय जैसी किताबों के माध्यम से शल्य और बाल चिकित्सा जैसे विषय के उपाय पर विधिवत प्रकाश डाला है। कई सारे आयुर्वेदिक प्राचीन ग्रंथ हैं जो अलग अलग चिकित्सा पद्धति जैसे कि कश्यप संहिता में "मातृत्व और शिशु" के बारे में उल्लेख है अनेकों बीमारियों के इलाज के लिए आयुर्वेद "संज्ञालोपन" और "कृमिघ्न" जैसी पद्धतियों का उपयोग किया जाता था।
अनेकों पेड़ पौधों की फूल,पत्ती,तना,जड़ और उसकी छाल से दवाओं का निर्माण किया जाता था आज यही पेड़ पौधे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं आइए कुछ ऐसे पौधों के बारे में विस्तार से बताते हैं जो आयुर्वेदिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण हैं।
कुटज(Kutaj)या इन्द्रजौ(Indrajau)का वृक्ष
कुटज एक धार्मिक और ऐतिहासिक औषधि है इसे विज्ञान की भाषा में(Holarrhena antidysenterica)कहते हैं।इसका वर्णन आयुर्वेदिक ग्रंथ शुस्रुत, भाष्य रत्नावली में मिलता है जो विशेषतः पित्त के विकारों को दूर करने में सहायक है कुछ बिंदुओं से इसकी उपयोगिता और महत्ता को पहचानेंगे।
- पौराणिक कथाओं और परम्पराओं में इस बात का वर्णन मिलता है कि इसका उपयोग यज्ञ में हवन के रूप में किया जाता था जिसके धुएं से भौतिक और मानसिक विकार नष्ट होते थे।
- कई आदिवासी संप्रदाय इस कुटज के पौधे को दिव्य औषधि के रूप में जानते हैं जो बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य लाभ में रामबाण है।
- इसे Sakra नाम से भी जाना जाता है यह एलर्जी, त्वचा में फंगल इन्फेक्शन, खुजली और सूजन और सोरायसिस जैसी गंभीर रोग में इसके छाल से बने पाउडर को लगाने से लाभ होता हैं।
- घाव भरने, पथरी रोग और दांतों की गंभीर बीमारियों में यह बड़े काम की औषधि है।
शलमाली(Shalmali)या सिल्क कॉटन ट्री
इसका आयुर्वेदिक औषधीय गुण आतों के लिए विशेष लाभदायक है चरक संहिता में इसे महिलाओं में दूध के निर्माण इत्यादि के लिए किया जाता था।
- इसे कपास का पेड़ भी कहा जाता है इसका साइंटिफिक नाम(Bombax Cebia)है।
- ऋग्वेद के वर्णन अनुसार इस पौधे की लकड़ियों से यज्ञों में अनुष्ठान किए जाते थे।
- इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते है इसकी छाल से चूर्ण बनता है जो पेट की कब्ज व मल को साफ करने में सहायक है।
- पुरुषों में प्रजनन कैपेसिटी के साथ ही वीर्य को गाढ़ा बनाता है।
द्रोणपुष्पी (Dronapushpi) "गुम्मा या तुम्बुरु"
इसे वैज्ञानिक भाषी लोग 'Thumbe' नाम से जानते हैं यह अगस्त से दिसंबर के बीच पाया जाता है।
- इस पौधे से बनी जड़ी बूटियों का उपयोग बुखार, टाइफाइड, पेट दर्द या पेट के अन्य विकारों में किया जाता है।
- पुरानी खासी,ठंड,मलेरिया या ब्लड की किसी प्रकार की समस्या में यह अत्यंत उपयोगी है।
- यह वात, पित्त और कफ का संतुलन बनाने में सहायक है सर्प के डस लेने के तुरंत बाद अगर इसके रस को पिला दिया जाए तो उसके विष के प्रभाव को रक्त से काफी हद तो कम कर देता है।
गंधर्व बुकु(Gandharva Buku)
इस आयुर्वेदिक जड़ी का उपयोग प्राचीन औषधियों के साथ मिलाकर किया जाता था यह तन और मन दोनों को मजबूत बनाता है इसका अर्क या काढ़ा मानसिक और शारीरिक दुर्बल इंसान लगातार सेवन कर ले तो वह सामान्य लोगों से बुद्धि और शरीर में तेज होगा। इसके बारे में ज्यादा जानकारी हमारी आयुर्वेद ग्रंथों में ही मिलती है सामान्य जन में इसका पेड़ कैसा दिखता है इसकी भी सूचना नहीं है।
- यह पेट के रोग जैसे गैस, कब्ज या अन्य दिक्कतों में लाभदायक है।
- यह वातनाशक है शरीर में जितनी भी बीमारियां वात के बढ़ने से फलती फूलती हैं यह सबको जड़ से नष्ट करता है।
महापुष्प (Mahapushpa)
यह एक प्राचीन पौधा है जिसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में किया जाता है इसकी वैरायटी के पौधे का वैज्ञानिक नाम विज्ञान ने बताया है किंतु यह बात अस्पष्ट है कि यह उसी प्रजाति का वृक्ष है कुछ ग्रंथों में इसका उल्लेख स्वास्थ्य के लाभ में महत्त्वपूर्ण रूप से दिया है और यह बालों के लिए रामबाण बताया गया है, और यह लगभग विलुप्त ही हो चुका है।
इनके अलावा कुछ ये पौधे हैं जो विलुप्त होने की कगार पर हैं या बहुत कम देखने को मिलते हैं।
- कांपिल्ला (Kampillaka)
- वटिका (Vatika)
- सिंधुज (Sindhuja)
- ताम्रक (Tamraka)
- मधुका (Madhuca Longifolia)
- जीवक (Malaxis Muscifera)
- कुष्ठ (Saussurea Lappa)
- शालपर्णी (Desmodium Gangeticum)
- पिपली (Piper Longum)
आयुर्वेदिक विज्ञान और विलुप्त औषधियाँ: क्या हम उन्हें फिर से उगा सकते हैं?
आयुर्वेद सदैव से ही प्रकृति पर निर्भर रहा है इसकी दवाइयों से जुड़ी वनस्पति घनघोर जंगलों में मिलती थी और जो जंगलों में निवास करने वाली जनजातियां थी वह प्रकृति पूजक होती थी और वनों के विकास में कभी बाधा नहीं बनती थी लेकिन अब आधुनिकता की होड़ ने सब बिगाड़ दिया है पूरी तरह से परिस्थितिक तंत्र बाधित हुआ है सरकारें वन संरक्षण की असफल प्रयास कर रही हैं अब जरूरत है एक बड़ी हरित क्रांति की ही तरह की कोशिश, अभी भी काफी कुछ बचाया जा सकता है।
- हालांकि वैज्ञानिकों ने अपने तरीके के प्रयास लगातार कर रहे हैं जहां जिस जड़ी बूटियों के लिए जो क्षेत्र अनुकूलित थे और वह वहां पाई जाती थी वहां खोज चल रही है।
- जिन जड़ी बूटियों की पहचान नही है उन्हे ग्रंथों से पढ़कर पहचान कर रिसर्च चल रहा है।
- वैज्ञानिक सीड बैंक बना रहे हैं जो विलुप्त होने की कगार पर हैं उनके बीज इकट्ठे कर सहेजा जाएगा और खत्म होने की कगार पर उन्हें जैविक रूप से उगाया जाएगा, आज शतावरी, मूसली, अश्वगंधा जैसी रोजमर्रा के इस्तेमाल करने वाली यह दवाएं प्रचुर मात्रा में खेती की जा रही है।
- इन जड़ी बूटियों की जैव विविधता को समझ कर बोटोनिकल गार्डन तैयार किए जा रहे हैं।
- टिश्यू कल्चर तकनीक से फिर पुनर उत्पादन कर इन दवाओं को पैदा किया जा रहा है।
निष्कर्ष
इन दुर्लभ जड़ी-बूटियों के बिना, आयुर्वेद ने बहुत कुछ खोया है,आयुर्वेद के इलाज का दायरा कम हो गया है इन वृक्षों के लुप्त होने से परिस्थितिक तंत्र को भारी नुकसान हुआ है।
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आयुर्वेद वात,पित्त और कफ के आधार पर चिकित्सा करता है हर जड़ी बूटी की विविधता बहुत ज्यादा है उद्धरण के तौर पर देखा जाए तो एक ही पौधे की पत्तियां, फूल, जड़ और उसकी छाल अलग-अलग रोगों का नाश करती हैं। भविष्य में विलुप्तीकरण को रोकने से वापस जान आ सकती है यह असंभव नहीं है।