भगत सिंह ने क्यों कहा था 'इंकलाब जिंदाबाद'? वजह जानकर रह जाएंगे हैरान!

महज 23 साल 5 महीने और 23 दिनो की जिंदगी जीने वाले अमर शहीद भगत सिंह हमेशा के लिए अमर हो गए, महज इतनी सी उम्र में भगत क्रांति के मानकों से कहीं ऊपर निकल जाते हैं। 27 सितम्बर 1907 को पंजाब में जन्में भगत सिंह ने न सिर्फ क्रांति की मसाल जलाई अपितु युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत रहे।

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वह वैचारिकता में लेनिन से भी इत्तेफाक रखते थे वहीं जब पूंजीवाद की बात हो तो मार्क्स जैसे लेखकों से प्रभावित भी हुए। उन्हें किसी खास वैचारिकता का मानना बेईमानी होगी क्योंकि वह समतावादी, मानवतावादी और क्रांतिकारी दार्शनिक थे। इस लेख में आप सब पढ़ेंगे भगत सिंह के हिसाब से इंकलाब जिंदाबाद के क्या मायने हैं।

'इंकलाब जिन्दाबाद' क्रांति का बिगुल

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नारों का बड़ा योगदान रहा है चाहे क्रांति का बिगुल हो या अपने हक की मांग करना, हमेशा नारों ने ही साथ निभाया है।आजादी की लड़ाई में एक नारा अक्सर सुनने को मिलता है 'इंकलाब जिंदाबाद'।भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव फांसी लगने के ठीक पहले जोरदार आवाज में इंकलाब जिंदाबाद बोला था पूरे देश में उस समय लहर सी आ गई थी पूरे भारत का नौजवान सड़कों पर उतर आया था।

इंकलाब जिंदाबाद का अर्थ केवल अंग्रेजी सरकार से स्वतंत्रता नहीं थी बल्कि पूरी तरह शोषण मुक्त समाज की स्थापना थी, सत्ता परिवर्तन भर नहीं बल्कि समग्र परिवर्तन करना था। भारतीय क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई के सिंबल के तौर पर इसका इस्तेमाल किया।

'इन्कलाब जिंदाबाद' का ऐतिहासिक महत्त्व

इस नारे को भारत में सर्वप्रथम रामप्रसाद बिस्मिल ने 1920 के दशक में लगाया था धीरे-धीरे यह क्रांतिकारियों की पहचान बन गया और 1930 के अंत तक तो अंग्रेजी हुकूमत के कानों में गाली की तरह गूंजने लगा था, Inqlab Jindabad को सही मायने में पहचान भगत सिंह की वजह से ही मिली, जब भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त समेत असेंबली में बंब फोड़ा था तब पूरा कोर्ट रूम इसी नारे से गूंज उठा और अपनी गिरफ्तारी को अंजाम दिया।

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इस नारे का इतिहास रूस की क्रांति में मिलता है सोशलिस्ट लेखक अप्टन सिंकलेयर ने अपनी किताब बोस्टन और आइल में इसका जिक्र भी किया है लेकिन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इसके अलग मायने थे।

भगत सिंह के लिए "इंकलाब" का मतलब

साल 1929 में लाहौर की जेल में भगत सिंह और उनकी पार्टी सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य और उनके साथी जतिन दास समेत भूख हड़ताल में बैठ गए, परिणाम यह हुआ कि लगातार 63 दिन भूखे रहने के बाद कोलकाता के जतिन दा की मृत्यु हो गई, उस समय एक मॉडर्न रिव्यू पत्रिका चलती थी जिसके संपादक ने इस घटना पर इंकलाब जिंदाबाद के नारे की गहरी आलोचना की बाद में भगत सिंह ने उन संपादक महोदय को इंकलाब का सही अर्थ पत्र के माध्यम से समझाया उसी का सार प्रस्तुत कर रहे हैं।

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"Bhagat Singh ने कहा कि बम और पिस्तौल या हिंसा कभी भी क्रांति का पर्याय नहीं है हा कुछ जगहों पर इस्तेमाल हो सकता है उदाहरण के लिए जतिन दा भूखे रहे उनके लिए इंकलाब एक हिम्मत थी किसी भी अताताई ग्रुप के खिलाफ यह नारा संघर्ष के समय हिम्मत देता है जोश पैदा करता है लोगों को आपस में जोड़ता है।

क्रांति की इस भावना से मनुष्य की आत्मा रूढ़वादी मानसिकता को नष्ट कर नए प्रगति के मार्ग खोजे, कोई भी संगठित शक्ति बदलाव के मार्ग को डिगा न पाए, क्रांति का अंतिम पायदान बम पिस्तौल न होकर एक समतावादी व्यवस्था का निर्माण है।"

भगत सिंह के लिए इंकलाब का मतलब कोई राजनीतिक क्रांति नहीं थी उन्होंने कहा भी था कि गोरे चले जाएंगे तो भूरे राज करने लगेंगे, उनका लक्ष्य केवल अंग्रेजी शासन को बदलकर स्वदेशी सत्ता का निर्माण नहीं था बल्कि हर भारतीय के लिए सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से बराबरी और असमानता, गरीबी और शोषण से मुक्ति दिलाना था।

भगत सिंह की अंतिम लड़ाई और 'इंकलाब' 

23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जब फांसी दी जा रही थी उस समय भी उनके होंठों पर यह नारा बुलंद था वह निडर होकर नौजवानों को संदेश देना चाहते थे कि इंकलाब की मसाल केवल जीवन तक ही सीमित नहीं है अपितु मरने के बाद भी जलती रहेगी और आज भी जल ही रही है।

इन्कलाब की आवाज आज भी हर उस व्यक्ति के साथ है जेपी न्याय, समानता और शोषण के लिए लड़ता है, भगत सिंह बहुत कम उम्र में शहीद हुए लेकिन उन्हें जीवन का आंकलन करने बैठे तो लगता है कि कोई पूरी उम्र करके गया होगा उनके विचार लेखन सब अद्वितीय और दूरदर्शी हैं।

निष्कर्ष

चंद्रशेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारी ने भगत सिंह की काबिलियत और योग्यता पर भरोसा कर उन्हे अपना राजनीतिक वारिस अर्थात अपनी बनाई पार्टी की बागडोर भगत के हाथों में सौंप दी थी, भगत सिंह कि कही हर बात आज भी बिलकुल सार्थक सिद्ध होती है उनके जैसा विचारक सदियों में एक बार ही जन्म लेता है भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व के नौजवानों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं क्रांति की बात जहां भी होगी भगत सिंह हमेशा रास्ता दिखाने जरूर आएंगे।

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Amit Mishra

By Amit Mishra

नमस्कार! यह हमारी टीम के खास मेंबर हैं इनके बारे में बात की जाए तो सोशल स्टडीज में मास्टर्स के साथ ही बिजनेस में भी मास्टर्स हैं सालों कई कोचिंग संस्थानों और अखबारी कार्यालयों से नाता रहा है। लेखक को ऐतिहासिक और राजनीतिक समझ के साथ अध्यात्म,दर्शन की गहरी समझ है इनके लेखों से जुड़कर पाठकों की रुचियां जागृत होंगी साथ ही हम वादा करते हैं कि लेखों के माध्यम से अद्वितीय अनुभव होगा।

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