छठ पूजा का त्योहार एक धार्मिक त्यौहार है यह बिहार, झारखंड समेत उड़ीसा और बंगाल में मनाया जाता है यह कार्तिक माह की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। लोक कथाओं में इस पर्व के मनाने के पीछे कई धार्मिक कहानियां और किस्से प्रचलित हैं।
चार दिन तक चलने वाला यह त्योहार धार्मिक सांस्कृतिक महत्त्व के साथ वैज्ञानिक लाभ देने वाला है, पूजा के दौरान इसका उपवास और सूर्य को अर्घ्य देने वाली प्रथाएं शरीर व प्रकृति के लाभदायक है। इस ब्लॉग में जानेंगे (Chhath Festival Nature Puja) छठ पूजा के वैज्ञानिक रहस्य और स्वास्थ्य पर इसके पड़ने वाले प्राकृतिक लाभ के बारे में।
आस्था का महापर्व "छठ" के शारीरिक लाभ व वैज्ञानिक महत्त्व
हमारा देश सदियों से प्रकृति पूजक देश रहा है नदियों, पेड़, पशु व हवा, जल थल सबकी पूजा होती है कदम कदम पर विभिन्न आस्थाओं का समागम मिलेगा, छठ पूजा भी धार्मिक संस्कृति के साथ वैज्ञानिक लाभ भी हैं जिनका असर स्वास्थ्य के लिहाज से काफी लाभप्रद है।
सूर्य को अर्घ्य देने से स्वास्थ्य लाभ
सनातन धर्म में भगवान सूर्य की पूजन का विशेष स्थान है और छठ में इन्हें अर्घ्य दिया जाता है सुबह और शाम अर्घ्य के दौरान नदी के पानी में खड़े होकर पूजा की जाती है विज्ञान की दृष्टि से सूरज से UV-B Rays निकलने का सबसे सही समय सुबह और शाम है जो विटामिन डी के साथ हड्डियों को मजबूत करता है। प्राकृतिक जल में खड़े होना एक तरह की हाइड्रो थेरेपी होती है जो शरीर में रक्त संचार को संतुलित करती है।
छठ पूजा पद्धति और योग में समानताएं
भक्तों द्वारा कई घंटों तक नदी और तालाबों में खड़े होकर पूजा करना किसी योग से कम नहीं ही ताड़ासन और सूर्य नमस्कार मुद्राओं जैसी समानताएं देखने को मिलती हैं। अर्घ्य के दौरान धीमी सांसे प्राणायाम और सूरज की तरफ एक टक से निहारना मेडिटेशन है।
उपवास से हैं वैज्ञानिक लाभ
चार दिवसीय इस त्यौहार में पहले दिन से अंतिम दिवस तक व्रत की परम्परा है।
- पहला दिन 'नहाए-खाए' कहलाता है इस दिन भक्त तालाब में स्नान करके शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं शरीर और बुद्धि के शुद्धिकरण का दिन है।
- द्वितीय दिवस 'खरना' जिसमें निर्जला व्रत रहना होता है और शाम को गुण चावल की खीर खाई जाती है।
- संध्या अर्घ्य तृतीय दिवस है जिसमें सायं काल सूर्य को पानी चढ़ाकर रात में छठी मैया की कथा होती है।
- चौथे दिन सूर्य को सुबह जल दिया जाता है इसलिए इसे उषा अर्घ्य कहा जाता है, और फिर 36 घंटे के उपवास के बाद व्रत तोड़ा जाता है।
36 घंटे के निर्जला व्रत से शरीर पूरी तरह डिटॉक्स हो जाता है मन में सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार होता है, मेटाबॉलिज्म मे सुधार के साथ वजन और सुगर नियंत्रण होता है, लंबे समय बिना कुछ खाए रहने से कोशिकाओं के जमे विषैले पदार्थ नष्ट होते हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
छठ पूजा के प्रसाद का महत्त्व
छठ पूजा में प्रसाद के लिए उपयोगी वस्तुएं ठेकुआ, गुण, चावल, नारियल, केला, अदरक मूली और दूध से बने पदार्थ हैं जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम है जैसे कि ठेकुआ गेहूं के आटा और गुड़ से बनता है जो उपवास के समय ग्रहण करने से ऊर्जा को बढ़ाता है ऐसे ही गुण आयरन का भरपूर स्रोत है नारियल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट प्रॉपर्टी इम्यून सिस्टम को बढ़ाती है फलों और सब्जियों से पाचन शक्ति में सुधार होता है।
छठ पूजा और पर्यावरण महत्त्व
छठ पूजा पूरी तरह प्रकृति से जुड़ी पूजा है इसके पर्यावरणीय लाभ साफ तौर पर देखे जा सकते हैं।
- नदी तालाबों की सफाई करके पूजा योग्य बनाना।
- किसानों द्वारा उगाई गई सब्जी व अन्य उत्पादों से भोग बनाना।
- किसी भी प्रकार का प्लास्टिक बैग न उपयोग करना अपितु बांस से बने टोकरी का इस्तेमाल करना।
- सूर्य की पूजा करना पर्यावरण चेतना का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। और स्थानीय जीविकाओं को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
छठ पूजा धार्मिक होने के साथ प्रकृति पूजा है जो पर्यावरण और मनुष्य के बीच को संतुलित करता है नदियां जिन्हें हम माता मानते हैं इस साल के मौके पर साफ सफाई करना, बांस से बने टोकरी व अन्य उत्पादों से आसपास के लोगों की जीविकाओं का ख्याल इसके महत्ता को सर्वांगीण बनाता है। छठ का महापर्व खान पान और शुद्धिकरण सेहत मंद होने का संदेश देते हैं वहीं भगवान सूर्य की प्रकृति से जोड़ने की ओर इशारा करता है और पूजा पद्धति जीवन की शैलियों को बताता है।
इन्हें भी पढ़ें,
- Makar Sankranti 2024 मकर संक्रांति सूर्योत्सव और नव आरंभ का प्रतीक
- विजयदशमी या दशहरा क्यों मनाया जाता है इतिहास, शाब्दिक अर्थ, प्रथाएं
- माता दुर्गा के 9 स्वरूप और नवरात्रि का इतिहास
इस ब्लॉग में वैज्ञानिकता के आधार पर छठ पूजा के महत्व को बताया गया है आपके मन में कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो तो कमेंट में साझा अवश्य करें।