भारत की आत्मा में झांकेंगे तो अनेकों प्रेम की कहानियां सदियों से सुनने को मिलती हैं हर कहानी का अलग अलग मर्म और विशेषता है, भारत भूमि वीरता, प्रेम और सौहार्दता का प्रतीक पुरातन काल से है।

Valentine Week चल रहा है जिसे पूरा विश्व प्रेम सप्ताह के रूप में मनाता है ऐसे में अगर प्रेम के सबसे बड़े भगवान का जिक्र न हो तो बात अधूरी सी लगती है यह पृथ्वी जब तक रहेगी राधा और कृष्ण के प्रेम की गूंज सदैव सर्वोपरि होगी, इस ब्लॉग में हम बताएंगे कि Radha Krishna के प्रेम से आज की युवा पीढ़ी क्या सीख ले सकती है।
प्रेम क्या है (What is Love)

प्रेम का वास्तविक अर्थ मुक्त हो जाना है अर्थात मोक्ष की प्राप्ति, चाहे वह ईश्वर से हो या अपने प्रेमी, प्रेमिका से। प्रेम वास्तव में आपको हमेशा आगे बढ़ाने का काम करता है वह शरीर से परे होता है प्रेम अनन्त होने के साथ ही बहुत ही आध्यात्मिक होता है, पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि यह सृष्टि प्रेम के सुर से ही चल रही है प्रेम के आदर्श स्वरूप को देखें तो राधा रानी और श्री कृष्ण का प्रेम इसका उत्तम उदाहरण है आज बदलते हुए प्यार के मायनों को समझने के लिए श्रीकृष्ण और राधा रानी की इन बातों से अवश्य सीखना चाहिए।
प्रेम निस्वार्थ होता है (Love is Selfless)
मदन मोहन भगवान ने प्यार के लिए कहा है कि यह मोह से आगे की बात है इस पर कुछ भी अपना नहीं रहता और न ही आप कुछ पाने की चाह रखते हैं माता रानी ने श्री कृष्ण जी के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया था खुद का जीवन कृष्ण मय कर लिया था, उन्होंने कभी भी अपेक्षाएं नहीं की और न ही किसी बात की चाह की, इस बात से हमें यह बात सीखने को मिलती है कि प्रेम स्वार्थ के घेरे से ऊपर की बात है।
प्रेम में अहंकार का त्याग
श्रीकृष्ण और राधा के जीवन में अहंकार जैसी तुच्छ चीजों के निशान भी नहीं मिलते थे, कृष्ण स्वयं द्वारकाधीश थे 64 कलाओं में निपुण, लेकिन जब वह अपनी प्रेमिका के सामने होते थे तब वह सिर्फ प्रेमी होते थे इसके इतर वह कुछ भी नहीं थे, आज तो दिखावे का दौर है इस बात को आज की पीढ़ी को आत्मसात करना चाहिए।
आन्तरिक सुंदरता है जरूरी
सुदर्शन धारी ने यह संदेश दिया कि प्रेम में आंतरिक सुंदरता का महत्व है न कि बाहरी आवरण का, अपने इस अवतारी रूप में भगवान सांवले थे जबकि राधा रानी अत्यंत गोरी थीं लेकिन फिर भी उनका प्रेम अनन्त की गहराइयों तक फैला हुआ है। उन दोनों की उम्र में भी फासले थे लेकिन कहते हैं न कि न उम्र की सीमा हो न जाति का हो बन्धन, शायद लिखने वाले ने यहीं से सीख ली होगी।
साथ में परस्पर आगे बढ़ना
भारतीय संस्कृति में प्रेम के आदर्श रूप में अनंत काल तक राधा और कृष्ण का नाम अमर रहेगा, हमें उनसे सीखना चाहिए कि कैसे एक दूसरे की कमियों को नजर अंदाज न करके बल्कि उन कमियों को परस्पर साझा कर उनको दूर करने के बारे में सोचना चाहिए।
भगवान कृष्ण की रासलीला से लेकर उनके जीवन के हर लीला में राधा साथ रहीं और कृष्ण भी राधा को हमेशा प्रोत्साहित करते रहे, उन्होंने साझा लक्ष्य निर्धारित किए चाहे द्वारिका की ओर प्रस्थान रहा हो या फिर राधा का बरसाने की रानी बनना हो, वह दोनों आपसी समझ से सदैव निश्चल भाव से एक दूसरे को प्रेरित करते रहे।
प्रेम में स्वतंत्रता
चूंकि प्यार को बाधा नहीं अपितु स्वतंत्रता का आदर्श रूप है भगवान कृष्ण ने कभी भी देवी राधा को किसी भी प्रकार से बाध्य नहीं किया अपितु हर निर्णय के लिए विश्वासपूर्वक उन पर छोड़ दिया क्योंकि प्रेम नियंत्रण का विषय नहीं है, प्रेम में खुद की पहचान को खत्म नहीं किया और न ही सामने वाले प्रेमी की आईडेंटिटी को खोने दिया यही कारण है कि दोनों की व्यक्तिगत पहचान के साथ एक दूसरे के प्रति सम्मान बरकरार रहा उन्होंने एक दूसरे को हर पहलू पर स्वतंत्रता दी।
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निष्कर्ष
भारतीय संस्कृति के मूल में प्रेम है और कई युगों में कृष्ण और राधा के रूप में प्रेमी उन्हें आदर्श मानते रहेंगे, वैसे तो इन दोनों के जीवन से हजारों बातें सीखी जा सकती है। प्रेम की सच्ची परिभाषा का ओरिजिन हमे इन दोनों के प्रेम से मिलता है इस प्रेम के सप्ताह में आप इनसे कई बातें सीख सकते हैं। आपको यह लेख अच्छा लगे तो कमेंट जरूर करें साथ ही बताएं आप राधा कृष्ण के जीवन से और किन पहलुओं से सीख सकते हैं?